
सुनील कुमार माथुर, जोधपुर, राजस्थान
किसी भी परिवार को एकता के सूत्र में बांधकर रखने के लिए घर परिवार के मुखिया को मालिक बनकर नहीं अपितु माली बनकर परिवार की बागडोर संभालनी चाहिए। जिस प्रकार माली बग़ीचे को मालिक बनकर नहीं अपितु माली बनकर उसकी देखभाल करता हैं तभी तो उस बगीचे का हर एक पुष्प महकता है वरना बगीचा कभी का ही उजड़ गया होता। ठीक यही बात घर परिवार पर लागू होती है।
जब घर का मुखिया घर का मालिक बनकर नहीं अपितु माली बनकर परिवार की देखभाल करता है तभी परिवार में सुख-शांति और समृद्धि बनी रहती हैं और परिवार में एकजुटता दिखाई देती है। यह सब मुखिया के परिवार के प्रति त्याग, बलिदान, संयम, समर्पण और सहनशीलता को दर्शाता है। अतः परिवार को एकजुट रखना परिवार के मुखिया की कुशल कार्यशैली के साथ ही साथ उसका समर्पण भाव भी हैं। लेकिन वह इसे कभी प्रचारित व प्रसारित नहीं करता हैं। यह उसकी महानता को दर्शाता है।
यही कारण है कि संयुक्त परिवार जहां भी हैं वे आज इस प्रतिस्पर्धा के युग में भी वटवृक्ष की भांति हमारे समक्ष खड़े हैं। अतः जीवन में त्याग, सहनशीलता, करूणा, क्षमा का भाव अवश्य ही रखें। आपका तनिक सा भी त्याग व सहनशीलता परिवार को स्वर्ग बना सकता हैं और तनिक सा भी अहंकार परिवार को नरक में धकेल सकता हैं। यह अब आप पर निर्भर करता है कि आप कौन सी राह चुनते हो।
समर्थन और विरोध
समर्थन और विरोध विचारों का होना चाहिए किसी व्यक्ति का नहीं। चूंकि हो सकता हैं कि हम जिस व्यक्ति का विरोध कर रहे हैं उसके विचार हमसे भी श्रेष्ठ हो और यह भी हो सकता है कि जिसका हम समर्थन कर रहे हैं उसके विचार गलत हो। अतः कभी भी किसी से ईर्ष्या का भाव न रखें। अगर आपका कोई दुश्मन भी हैं और उसके विचार श्रेष्ठ हो तो उन विचारों का खुलकर समर्थन करना चाहिए। व्यक्ति-व्यक्ति में मतभेद हो सकता है लेकिन मनभेद नहीं होना चाहिए।
शब्दों की खूबसूरती
शब्द हमारी तरह बोलते नहीं हैं लेकिन फिर भी हर शब्द की खूबसूरती होती हैं। जब हम कोई शब्द लिखते हैं या बोलते हैं तब वे अपनी खूबसूरती को भी दर्शाते हैं। जैसे आप किसी का भला करोगे तो आपकों लाभ ही होगा, चूंकि भला का उल्टा लाभ ही होता है। ठीक उसी प्रकार दया करोगे तो लोग आपकों याद करेंगे, चूंकि दया का उल्टा याद ही होता हैं।
कहने का तात्पर्य यह है कि जब भी शब्दों का इस्तेमाल करें तब सोच-समझ कर ही इस्तेमाल करें। चूंकि शरीर पर लगी चोट दवा लेने या लगाने से ठीक हो सकती हैं लेकिन शब्दों से किसी के दिल को दुखाया तो फिर उस चोट का घाव भरना कठिन हो जाता है और फिर लोग उन शब्दों से दिल को लगी चोट को मरते दम तक याद रखते हैं। इसलिए कभी भी कटु शब्द न बोले और न ही किसी की भावना को ठेस पहुंचाने का प्रयास करें। हमेशा अच्छा बोलें, अच्छा सुनें और अच्छा ही लिखें। जब भी बोलने का अवसर मिले तब शब्दों की खूबसूरती को बरकरार रखें।
मूर्खता या कमजोरी नहीं
किसी का हर समय शांत रहना कोई मूर्खता या कमजोरी नहीं है अपितु यह उसका शालीनता का व्यवहार हैं। लेकिन जब आप उसकी शांति को कमजोरी या मूर्खता मानकर अपनी सीमा को लांघने लगते हैं तब सामने वाले की खामोशी उग्र रूप ले लेती हैं और उसके फिर घातक परिणाम ही देखने को मिलते हैं। मगर समाज में दुष्ट प्रवृत्ति के लोगों की कोई कमी नहीं है। एक ढूंढ़ो तो हजार दुष्ट व्यक्ति मिल जायेगे। अतः हमेशा सकारात्मक सोच रखो। सादगी पूर्ण जीवन व्यतीत करो। बिना वजह किसी के काम-काज में दखल अंदाजी न करें।
अपनी हरकतों से बाज नहीं आते
वर्तमान समय में ऑनलाइन लेखन खूब हो रहा हैं। कोरोना काल क्या आया, अनेक लघु और मझौले समाचार पत्र व पत्रिकाएं बंद हो गई। अब अधिकांश पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन ऑनलाइन हो गया है और पीडीएफ फाइल व्हाट्सएप या मेल पर डालकर प्रकाशक इतिश्री कर लेते हैं। इसी का फायदा उठाकर नकलची लेखकों की बाढ़ सी आ गई है। वे पुरानी पत्र-पत्रिकाओं में से रचनाएं चुराकर अपने नाम व पता, फ़ोटो व मोबाइल फोन नंबर सहित छपवा कर अपने आप को वरिष्ठ लेखक व साहित्यकार लिख रहे हैं और उनकी रचनाएं धड़ल्ले से प्रकाशित हो रहीं हैं।
उन्हें कितना भी समझाओ कि ऐसा करना गैर कानूनी कृत्य हैं तो भी वे आपकी बात नहीं सुनेंगे। वे अपनी हरकतों से बाज नहीं आएंगे। उन्हें तो बस सवेरे उठते ही पत्र-पत्रिकाओं में अपना नाम, फ़ोटो ही देखना पसंद हैं। वे अपनी नकलची रचनाएं प्रकाशित करवाने के लिए संपादक मंडल के सदस्यों को चाय-नाश्ता भी कराते रहते हैं ताकि उनका नाम हर रोज चलता रहें। इतना ही नहीं, उन्हें आर्थिक मदद कर अतिथि सम्पादक बनकर सम्पादकीय भी धड़ल्ले से लिख रहे हैं। अतः संपादक मंडल को भी चाहिए कि वे इस घिनौनी हरकत को बढ़ावा न दें।
Nice article