साहित्य लहर
आ रहा शरद
डॉ. एम डी सिंह
महाराजगंज, गाजीपुर (उत्तर प्रदेश)
बैठ गई धूप आकर पीपल की छांव में
आ रही है ठंड बैठ बादलों की नाव में
शीश पर पर्वतों के बाल श्वेत उगने लगे
चुभने को है बर्फ अब हवाओं के पांव में
दीप ले घर-घर में आने को दीपावली
आया समय पंख लिए चीटियों के गांव में
खूब बरखा ने तो मनचाहा खेल खेला
आखिर वह उलझ ही गई शरद के दांव में
रेनकोट-छाते अपने-अपने देश गए
तैयार हैं स्वेटर-मुफलर अपने ठांव में!
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