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आगरा के धरैरा गांव में 1983 में हुए भीषण हत्याकांड, जिसने पूरे क्षेत्र को झकझोर दिया था, उस मामले में पुलिस ने लगभग चार दशक बाद बड़ी कार्रवाई करते हुए तीन फरार दोषियों को गिरफ्तार कर लिया है। कुल्हाड़ी से बच्चों और महिलाओं की नृशंस हत्या वाले इस मामले में अब एक बार फिर न्यायिक प्रक्रिया आगे बढ़ी है।
- पांच हत्याओं से दहल उठा था धरैरा, 39 साल बाद तीन दोषी गिरफ्तार
- जमीन विवाद और पंचायत चुनाव की रंजिश बनी थी नरसंहार की वजह
- एफआईआर दर्ज कराने वाला कोई नहीं बचा, पुलिस बनी थी वादी
- आठ आरोपियों को मिली थी आजीवन कारावास की सजा
- हाईकोर्ट के सख्त आदेश के बाद पुलिस को मिली सफलता
आगरा। उत्तर प्रदेश के आगरा जिले के एत्मादपुर थाना क्षेत्र स्थित धरैरा गांव का नाम आज से 42 वर्ष पहले एक ऐसे हत्याकांड से जुड़ गया था, जिसने पूरे इलाके को दहला दिया था। 3 अगस्त 1983 की रात गांव में एक ही परिवार के पांच लोगों की कुल्हाड़ी से बेरहमी से हत्या कर दी गई थी। इस जघन्य अपराध में दो मासूम बच्चों और दो महिलाओं को भी नहीं बख्शा गया था। अब लगभग 39 साल बाद पुलिस ने इस मामले में फरार चल रहे तीन दोषियों को गिरफ्तार कर न्यायालय में पेश किया है, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया।
घटना में सुख स्वरूप (25), उनकी मां कटोरी देवी (50), पत्नी राजवती (23), सात वर्षीय पुत्र श्याम और दो वर्षीय पुत्री कल्लो की निर्ममता से हत्या कर दी गई थी। हमलावरों ने कुल्हाड़ी से वार कर पूरे परिवार को मौत के घाट उतार दिया, जबकि उनके नौकर और एक बुजुर्ग को गंभीर हालत में छोड़ दिया गया था। इस निर्मम हत्याकांड के बाद गांव में ऐसा सन्नाटा पसरा कि प्राथमिकी दर्ज कराने के लिए कोई परिजन या ग्रामीण सामने नहीं आया। अंततः एत्मादपुर थाने में तैनात सिपाही रामपाल सिंह पुलिस वादी बने और अज्ञात के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज किया गया।
पुलिस जांच में सामने आया कि मृतक सुख स्वरूप किसान थे और उनका अपने चाचा कुंवर पाल सिंह से पुश्तैनी जमीन को लेकर लंबे समय से विवाद चल रहा था। उसी वर्ष गांव में प्रधान पद के चुनाव प्रस्तावित थे। कुंवर पाल सिंह पक्ष चुनाव की तैयारियों में जुटा था, वहीं सुख स्वरूप ने भी अपनी मां कटोरी देवी को चुनाव मैदान में उतारने की घोषणा कर दी थी। इसी राजनीतिक और पारिवारिक रंजिश ने धीरे-धीरे हिंसक रूप ले लिया और पूरे परिवार के सफाए की साजिश रची गई।
विवेचना के दौरान पुलिस ने आठ आरोपियों के नाम उजागर किए, जिनमें कुंवर पाल सिंह के छह बेटे—मंजू सिंह पाल, अजय पाल, रामपाल, कैशपाल, राजपाल, सज्जन पाल—इसके अलावा गज सिंह का पुत्र सुमरपाल और नौकर मानिकचंद बघेल शामिल थे। पुलिस ने सभी को गिरफ्तार कर जेल भेजा और 4 सितंबर 1983 को आरोपपत्र दाखिल किया गया। 28 मार्च 1985 को अदालत ने सभी आरोपियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई।
हालांकि, हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान सभी दोषियों को लगभग डेढ़ साल बाद जमानत मिल गई। इसके बाद समय के साथ मंजू सिंह पाल, अजय पाल, रामपाल, कैशपाल और सुमरपाल की मृत्यु हो गई, जबकि राजपाल, सज्जन पाल और मानिकचंद बघेल जमानत पर बाहर आने के बाद फरार हो गए। अदालत ने इनके खिलाफ वारंट जारी किए और कुर्की की कार्रवाई भी की गई, लेकिन वे लंबे समय तक कानून की पकड़ से बाहर रहे।
हाईकोर्ट द्वारा सख्त रुख अपनाए जाने के बाद पिछले एक वर्ष से पुलिस इन फरार दोषियों की तलाश में जुटी हुई थी। अंततः शनिवार को पुलिस को सफलता मिली और तीनों आरोपियों को गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया गया। सभी की उम्र अब 60 वर्ष से अधिक है, लेकिन कानून की नजर में उनका अपराध आज भी उतना ही गंभीर माना गया, जितना चार दशक पहले था। इस गिरफ्तारी के साथ ही धरैरा हत्याकांड एक बार फिर सुर्खियों में आ गया है और पीड़ित परिवार को देर से ही सही, न्याय की उम्मीद जगी है।








