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धर्म-संस्कृतिफीचर

एक दन्त कथा : हमारे पालनहार

बालकृष्ण शर्मा

हमारे शास्त्रों के अनुरार संसार के समस्त प्राणियों का लालन पालन भगवान विष्णुजी करते हैं. बचपन में मेरे पिताजी ने इस सन्दर्भ में एक कथा सुनाई थी जो कुछ इस प्रकार थी. विष्णु लोक मे भोजन तैयार होने पर लक्ष्मीजी भगवान विष्णु को पुकार लगाती और भगवान उत्तर देते कि लक्ष्मी ठहरो अभी मुझे भूख नहीं लगी है क्योंकि संसार में कुछ प्राणीयों को भोजन नहीं मिला है और वो भूखे हैं.

भगवान का कहना था कि जब तक संसार के सारे प्राणियों का पेट नहीं भर जाता उन्हे भूख नहीं लगती. लक्ष्मीजी रोज रोज की इस परेशानी से थक गई थी और उन्हें विश्वास नहीं हो पाता था कि कैसे भगवान यह जान पाते हैं कि इतने बड़े संसार में सब प्राणियों ने भोजन कर लिया है या कोई भूखा है.

लक्ष्मीजी के मन मे शंका भी थी कि कहीं विष्णुजी झूट मूंट ही तो उन्हें बहला दे रहे हों. एक दिन लक्ष्मीजी ने अपनी शंका का समाधान करने की ठान ही ली. बड़े सबेरे उन्होंने एक चींटी पकड़ी और अपनी सिंदूर की डिबिया में बंद कर उस डिबिया को अपनी साड़ी के आँचल में बाँध दिया.

दिन ढला, शाम हुई, रात हो गई, भोजन बन कर तैयार था. विष्णु भगवान को रोज की तरह पुकार लगाई गई, भगवान भोजन तैयार है शीघ्र आयें. परम कृपालू सच्चिदानंद ईश्वर का वही उत्तर, लक्ष्मी ठहरो अभी कुछ प्राणी भूखे हैं. कुछ समय और बीता भगवान भोजन कक्ष मे आये, लक्ष्मीजी ने भोजन परोसा.

अभी भगवान पहला निवाला मुंह में डालने ही वाले थे कि लक्ष्मीजी की हंसी छूट गई. भगवान हाथ रोक कर आश्चर्य से देखने लगे. लक्ष्मीजी ने बड़े भोले अंदाज में कहा “भगवान जी आज तो मैंने आपका झूठ पकड़ ही लिया. चाहे आपकी बात सही हो कि संसार के समस्त प्राणियों ने भोजन कर लिया है ,पर एक प्राणी अभी भी भूखा है यह तो मुझे मालुम है”.

परम कृपालू परमेश्वर ने मुस्कुराते हुए कहा, नहीं लक्ष्मी तुम्हारी शंका निराधार है, संसार के समस्त प्राणी भोजन पा चुके हैं. लक्ष्मीजी ने झट्पट अपने आंचल मे सबेरे से बंधी डिबिया निकाली और उसे प्रभु को दिखाते हुए बोली देखिये इसके अंदर एक प्राणी सुबह से भूखा प्यासा बैठा है.

करुणानिधान प्रभु ने बहुत अधीर हो कर कहा लक्ष्मी देखें तो यह निरीह प्राणी कैसे भूखा रह गया. लक्ष्मीजी ने बड़ी ही आतुरता से डिबिया खोली, सिंदूर इधर उधर उलटा पलटा और देखती क्या हैं, कि चींटी के मुंह मे एक दाना चावल है और वह उसे बडे चाव से खा रही है. लक्ष्मीजी तो जैसे आश्चर्य से मूक हो गई.

विष्णु भगवान बोले लक्ष्मी तुमने चींटी को आज सबेरे डिबिया में बंद किया किंतु मैंने कल रात ही, जब तुम अपना शृंगार हटा रही थी, तुम्हारे माथे पर लगा चावल का एक दाना शिंदूर के साथ डिबिया में रख दिया था. लक्ष्मीजी ने भगवान के चरणों को पकड़ते हुए इतना ही कहा “प्रभु आप सचमुच शृष्टि के पालनहार हो.


¤  प्रकाशन परिचय  ¤

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देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड)

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