एक महान व्यक्तित्व : पंडित दीनदयाल उपाध्याय
मुकेश कुमार ऋषि वर्मा
कहा जाता है कुछ लोग महान पैदा होते हैं, कुछ लोग महानता अर्जित करते हैं और कुछ पर महानता थोप दी जाती है । पंडित दीनदयाल उपाध्याय ऐसे महापुरुष हैं जिन्होंने महानता अर्जित की थी । हम बात करेंगे ऐसे युगदृष्टा पंडित दीनदयाल जी के संबंध में…।
पंडित दीनदयाल उपाध्याय का जन्म 25 सितंबर 1916 ई. को उनके नाना चुन्नीलाल शुक्ल के घर में हुआ था । भारतीय सामाजिक परंपरा के मुताबिक पहला प्रसव महिला के मायके में होता है । इसी मान्यता के मुताबिक दीनदयाल जी का जन्म उनके नाना के घर राजस्थान के धनकिया गांव में हुआ था ।
वैसे उनका पैतृक गांव उत्तर प्रदेश में जनपद मथुरा का नांगला चंद्रभान है । पंडित जी के पिता भगवती प्रसाद उपाध्याय ब्रज मथुरा में जलेसर रेलवेमार्ग पर एक स्टेशन पर स्टेशन मास्टर थे । पंडित दीनदयाल उपाध्याय का बचपन असहनीय परेशानियों के बीच बीता था । दीनदयाल जी मात्र 3 साल के थे, तभी उनके सिर से पिता का साया उठ गया । 7 वर्ष की छोटी सी आयु में मां रामप्यारी राम जी को प्यारी हो गईं । छोटी सी आयु में मां-बाप के आश्रय व ममता से वंचित हो गये ।
पंडित जी होनहार थे, ईश्वर की कृपा से बुद्धि तेज थी । उन्होंने कल्याण हाई स्कूल सीकर से मैट्रिक की परीक्षा उस जमाने में प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण की । उन्हें अजमेर बोर्ड और स्कूल दोनों की तरफ से एक- एक स्वर्ण पदक प्रदान किया गया । 2 साल बाद बिडला कॉलेज पिलानी से हायर सेकेंड्री परीक्षा में भी प्रथम श्रेणी प्राप्त की ।
इस बार भी उन्होंने दो स्वर्ण पदक प्राप्त किये । वर्ष 1939 में पंडित जी ने सनातन धर्म कॉलेज, कानपुर से गणित विषय में बीए की परीक्षा प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण की । यहीं उनकी भेंट राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ताओं से हुई । पंडित जी का जीवन अब एक नई दिशा की ओर मुड़ गया । राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ताओं के तपस्वी जीवन से प्रभावित होकर उनके मन में भी देश सेवा करने का विचार आ गया ।
पंडित जी ने आगरा के सेंट जॉन्स कॉलेज में एम.ए. में प्रवेश ले लिया, परंतु किन्हीं कारणों से कॉलेज उन्हें बीच में ही छोड़ना पड़ा । राष्ट्र के प्रति समर्पण होने के बाद उन्होंने तय कर लिया कि वे नौकरी नहीं करेंगे । राष्ट्रीय एकता के लिए कटिबद्ध राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के लिए अपना सारा जीवन अर्पित करने की भीष्म प्रतिज्ञा ली ।
संघ की शिक्षा का प्रशिक्षण प्राप्त करने के लिए वे संघ के 40 दिवसीय शिविर में भाग लेने के लिए नागपुर चले गये । 1951 ई. तक वे संघ में विभिन्न पदों पर रहकर समाज चेतना का कार्य करते रहे ।
वर्ष 1951 ई. में डा. श्मामा प्रसाद मुखर्जी द्वारा जनसंघ की स्थापना की । पंडित दीनदयाल उपाध्याय को उसका प्रथम महासचिव नियुक्त किया गया और उन्होंने अपनी सेवाएं जनसंघ को अर्पित कर दीं । डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी पंडित जी की सेवाओं व संगठन क्षमता से इतने अधिक प्रभावित हुए कि कानपुर अधिवेशन के बाद उनके मुंह से यही उदगार निकले कि ‘यदि मेरे पास और दो दीनदयाल होते तो मैं भारत का राजनीतिक रूप ही बदल देता ।”
दुर्भाग्य से 1953 ई. में डा. मुखर्जी का दुखद निधन हो गया । डॉक्टर मुखर्जी की मौत के बाद भारत का राजनीतिक स्वरूप बदलने की जिम्मेदारी पंडित दीनदयाल जी के कंधों पर आ गई । पंडित जी ने अपना कार्य विशेष ढंग से पूर्ण किया । 1967 के आम चुनाव के परिणाम सामने आए तब देश आश्चर्यचकित रह गया । अब पंडित जी एक महान नेता बन चुके थे । परंतु वे बहुत ही साधारण ढंग से रहते थे । वे अपने कपड़े स्वयं ही साफ करते । वे स्वदेशी के बारे में शोर नहीं मचाते थे परंतु वे कभी भी विदेशी वस्तु नहीं खरीदते थे ।
स्वाधीनता आंदोलनों के दौरान पत्रकारिता का उपयोग राष्ट्रभक्ति की अलख जगाने के लिए पंडित जी ने किया । राजनीति में सक्रिय होने के साथ-साथ साहित्य सेवा भी की । उनके लेख हिंदी व अंग्रेजी में विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहते थे । उनकी बौद्धिक सामर्थ्य का हमें पता इस बात से चलता है कि वे कितने महान थे ।
उन्होंने एक ही बैठक में (16 घंटे लगातार बैठकर) एक लघु उपन्यास “चंद्रगुप्त मौर्य” लिख डाला था । लखनऊ में राष्ट्रधर्म प्रकाशन की स्थापना की और राष्ट्रवादी विचारों को प्रसारित करने के लिए मासिक पत्रिका राष्ट्रधर्म शुरू की । बाद में पांचजन्य (साप्ताहिक), स्वदेश (दैनिक) की भी शुरुआत की । पंडित जी एक उच्चकोटि के पत्रकार थे।
11 फरवरी 1968 ई. को मुगलसराय रेलवे यार्ड में उनका शव मिला… सारा देश शोक में डूब गया । उनकी एक साजिश के तहत हत्या कर दी गई । दुनिया ने भारत के सबसे बुरे कांडों में से एक माना पं जी की हत्या की घटना को । बेहद दुखद बात है कि पंडित जी की रहस्यमई स्थिति में हुई हत्या की गुत्थी आज तक नहीं सुलझ सकी है …।
पंडित दीनदयाल उपाध्याय भारत में लोकतंत्र के उन पुरोधाओं में से एक हैं, जिन्होंने इसके उदार और भारतीय स्वरुप को गढ़ा है । पंडित जी को एक प्रख्यात चिंतक भी माना जाता है । उन्होंने राजनीति में सत्ता प्राप्ति के उद्देश्य को लेकर प्रवेश नहीं किया था । उनके अनुसार – ‘एकात्म मानवतावाद, प्रत्येक मनुष्य के शरीर, मन, बुद्धि और आत्मा का एक एकीकृत कार्यक्रम है ।’
“वसुधैव कुटुम्बकम्” की भावना से ओतप्रोत पंडित दीनदयाल जी को कोटि-कोटि नमन ।
संदर्भ-
1. न्यू इंडिया समाचार, पत्रिका- अंक 6, सितंबर (प्रथम)- 2021,
2. ब्रज संवाद, पत्रिका-अंक 7, अक्टूबर- 2021,
3. विकिपीडिया एवं गूगल सर्च इंजन ।