
रीवा| रीवा जिले में रेबीज संक्रमण से पीड़ित 14 वर्षीय नितिन नामक बालक जिंदगी और मौत के बीच संघर्ष कर रहा है। यह मामला ना केवल इस जानलेवा वायरस की गंभीरता को उजागर करता है, बल्कि नगर निगम की लापरवाही और सरकारी अस्पतालों में मिलने वाली वैक्सीन की गुणवत्ता पर भी गंभीर सवाल खड़े करता है। 16 जून को नितिन को एक पागल आवारा कुत्ते ने काट लिया था।
परिवार ने समय रहते सरकारी अस्पताल में उसे रेबीज के तीन इंजेक्शन लगवाए, लेकिन इसके बावजूद उसकी हालत सुधरने के बजाय लगातार बिगड़ती चली गई। नितिन अपनी मौसी के घर नरेंद्र नगर आया हुआ था, और वहीं यह हादसा हुआ। बीते दो दिनों से नितिन की हालत और अधिक गंभीर हो गई, जिसके बाद उसे संजय गांधी अस्पताल, रीवा में भर्ती कराया गया। डॉक्टरों के अनुसार, अब उसके शरीर में रेबीज संक्रमण के लक्षण स्पष्ट रूप से उभर चुके हैं, और इस चरण पर इलाज संभव नहीं है।
लक्षण उभरने के बाद इलाज असंभव
चिकित्सकों का कहना है कि रेबीज एक ऐसा संक्रमण है, जिसमें एक बार लक्षण दिखने के बाद रोगी को बचा पाना लगभग असंभव होता है। लक्षणों में बेचैनी, बुखार, सिरदर्द, गले में ऐंठन, जल का डर (Hydrophobia) और स्नायु तंत्र का गहरा प्रभाव शामिल होता है। नितिन अब इन्हीं लक्षणों से पीड़ित है, और डॉक्टरों ने स्पष्ट रूप से कह दिया है कि अब कोई चिकित्सा सहायता कारगर नहीं होगी।
इस घटना ने नगर निगम की कार्यप्रणाली पर भी गंभीर सवाल खड़े किए हैं। स्थानीय लोगों का कहना है कि नगर निगम सिर्फ कागज़ों में आवारा कुत्तों को पकड़ने का दावा करता है, जबकि हकीकत में गली-मोहल्लों में अब भी खतरनाक कुत्ते खुले घूम रहे हैं।
क्या वैक्सीन थी नकली या घटिया?
परिजनों और स्थानीय नागरिकों में यह सवाल भी तेजी से उठ रहा है कि यदि नितिन को समय पर रेबीज वैक्सीन दी गई थी, तो फिर उसका असर क्यों नहीं हुआ? क्या सरकारी अस्पतालों में दी जा रही दवाइयां और इंजेक्शन मानकों के अनुरूप नहीं हैं? या फिर कहीं वैक्सीन की गुणवत्ता पर कोई समझौता तो नहीं हुआ?
विशेषज्ञों और डॉक्टरों का कहना है कि रेबीज से बचाव का एकमात्र तरीका है—समय पर और पूरा वैक्सीनेशन। किसी भी जानवर के काटने पर तुरंत इलाज लेना और पूरा टीकाकरण कराना अनिवार्य है। साथ ही आम नागरिकों को इसके प्रति जागरूक करना और दवाइयों की गुणवत्ता सुनिश्चित करना सरकार की ज़िम्मेदारी है।