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देहरादून में हत्या के एक गंभीर मामले में पुलिस की जांच संबंधी लापरवाही अदालत में उजागर हुई, जिसके चलते आरोपी को बरी कर दिया गया। चाकू से फिंगरप्रिंट न लेना, घटनास्थल सील न करना और तकनीकी साक्ष्य जुटाने में चूक अभियोजन के लिए घातक साबित हुई।
- जांच की खामियों ने ढहाया हत्या का केस, आरोपी को मिली राहत
- फॉरेंसिक साक्ष्य के अभाव में कमजोर पड़ा अभियोजन, कोर्ट ने जताई नाराजगी
- डोईवाला हत्या मामले में पुलिस की लापरवाही पर अदालत सख्त
- चूक पर चूक: फिंगरप्रिंट, सीडीआर और नक्शानजरी के बिना कैसे चलेगा केस?
देहरादून में हत्या के एक संगीन मामले में पुलिस की गंभीर लापरवाही सामने आने के बाद अदालत ने आरोपी को बरी कर दिया। जांच के दौरान जिस चाकू से महिला की हत्या की गई थी, उस पर फिंगरप्रिंट तक नहीं लिए गए। इसके अलावा घटनास्थल से जुड़े कई अहम साक्ष्य एकत्र नहीं किए गए, जिससे अभियोजन पक्ष अदालत में अपना मामला मजबूती से पेश नहीं कर सका। पंचम अपर सत्र न्यायाधीश राहुल कुमार श्रीवास्तव की अदालत ने साक्ष्यों के अभाव और विवेचना में गंभीर खामियों का हवाला देते हुए आरोपी साहिल अंसारी को दोषमुक्त कर दिया।
अदालत ने इस मामले में थाना डोईवाला पुलिस द्वारा की गई लापरवाही पर कड़ी टिप्पणी करते हुए पूर्व विवेचक के विरुद्ध कार्रवाई के लिए आदेश की प्रति वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक को भेजने के निर्देश भी दिए हैं। मामले की शुरुआत तीन जून 2016 को हुई, जब रेखा नामक महिला ने डोईवाला कोतवाली में शिकायत दर्ज कराई। रेखा ने आरोप लगाया कि साहिल अंसारी, निवासी पुरवामुख्तियान, थाना सिविल लाइन मेरठ, उनकी बहन रेनू को वर्ष 2006 में मेरठ से भगा कर लच्छीवाला ले आया था और किराये के मकान में रहने लगा।
रेखा के अनुसार, होली के आसपास आरोपी ने शिव मंदिर लच्छीवाला में रेनू से विवाह किया और इसके बाद देहरादून कोर्ट में कोर्ट मैरिज भी की। शादी के बाद दोनों की एक बेटी हुई। शिकायत में यह भी बताया गया कि साहिल अंसारी की यह तीसरी शादी थी और वह रेनू पर लगातार दबाव बना रहा था कि वह किसी और से शादी कर ले और बच्ची उसे सौंप दे। मना करने पर आरोपी द्वारा जान से मारने की धमकी देने का भी आरोप लगाया गया। चार जून 2016 को रेखा जब अपने भतीजे सोनू के साथ डोईवाला पहुंची, तो उन्हें मिस्सरवाला रेलवे लाइन के पास एक महिला का शव मिलने की जानकारी मिली।
मौके पर पहुंचने पर शव की पहचान रेनू के रूप में हुई। इसके बाद पुलिस ने आरोपी के खिलाफ हत्या और साक्ष्य छिपाने का मुकदमा दर्ज किया। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में चिकित्सक ने मृत्यु का कारण धारदार हथियार से गले की नस कटना बताया। हालांकि, अदालत में सुनवाई के दौरान अभियोजन की कमजोरियां एक-एक कर सामने आती गईं। विवेचना अधिकारी ने स्वीकार किया कि जिस बाथरूम में हत्या होने की बात कही गई, वहां न तो नक्शानजरी बनाई गई और न ही उस स्थान को सील किया गया।
मृतका के मोबाइल फोन की कॉल डिटेल रिकॉर्ड (सीडीआर) न तो मंगाई गई और न ही आरोपी की लोकेशन ट्रेस करने का प्रयास किया गया। आसपास के लोगों के बयान ठीक से दर्ज नहीं किए गए और आरोपी के वैवाहिक इतिहास की भी गहन जांच नहीं की गई। सबसे गंभीर चूक यह रही कि जिस चाकू से हत्या किए जाने का आरोप था, उस पर फिंगरप्रिंट नहीं लिए गए। फॉरेंसिक साक्ष्यों की इस कमी ने पूरे मामले को कमजोर कर दिया। अभियोजन पक्ष की ओर से 16 गवाह पेश किए गए, लेकिन तकनीकी और भौतिक साक्ष्य के अभाव में अदालत को संदेह का लाभ आरोपी को देना पड़ा।
अदालत ने अपने फैसले में स्पष्ट किया कि हत्या जैसे गंभीर अपराधों की जांच में इस तरह की लापरवाही न केवल न्याय प्रक्रिया को प्रभावित करती है, बल्कि पीड़ित पक्ष के अधिकारों के साथ भी अन्याय है। इस निर्णय के बाद एक बार फिर पुलिस की विवेचना प्रक्रिया और फॉरेंसिक जांच की गुणवत्ता पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं।





