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मानव जीवन में स्वभाव और संस्कार ही हमारे व्यक्तित्व का वास्तविक परिचय देते हैं। सम्मान, विनम्रता और त्याग जैसे गुण जीवन को आनंदमय बनाते हैं, जबकि अभिमान और क्रोध उसे दूषित करते हैं।
सुनील कुमार माथुर
इस नश्वर संसार में हर कोई अपने ढंग से जीवन जी रहा है। यही वजह है कि किसी को किसी दूसरे की चिंता नहीं है। आज छोटे-छोटे बच्चे अपने से बड़ों का अपमान कर देते हैं, चूंकि उनमें संस्कारों का नितांत अभाव है। वे नहीं जानते कि किससे कैसे बात की जानी चाहिए, कौन किस पद का व्यक्ति है। वे तो बस अपना हित साधने में ही लगे रहते हैं। पहले की पीढ़ी संस्कारों के साथ आज भी जी रही है और वर्तमान पीढ़ी आधे-अधूरे संस्कारों के साथ जी रही है, और आने वाली पीढ़ी शायद बिना संस्कारों के ही जीवन व्यतीत करेगी। ऐसा आभास आज की पीढ़ी को देखकर लग रहा है। अपमान करना किसी का स्वभाव हो सकता है, लेकिन सम्मान करना हमारा स्वभाव होना चाहिए।
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अगर कोई आपसे झुक कर मिलता है तो समझिए कि उसका कद आपसे भी ऊँचा है, क्योंकि जो सज्जन पुरुष होते हैं, वे सभी का मान-सम्मान करते हैं—चाहे वह छोटा हो या बड़ा। चूंकि वे जानते हैं कि देना हो तो दान दीजिए, लेना हो तो ज्ञान लीजिए, और त्यागना हो तो क्रोध, अहंकार, अभिमान और मन में व्याप्त सभी बुराइयों का त्याग कीजिए। अनेक लोग कहते हैं कि जीवन में खुशियों को पाना है तो बहुत कुछ इकट्ठा करना पड़ता है, लेकिन अनुभव कहता है कि जीवन में खुशियों को पाने के लिए बहुत कुछ छोड़ना पड़ता है।
जन्म लेना और मृत्यु होना हमारे हाथ की बात नहीं है, लेकिन जो यह मानव जीवन हमें मिला है, उसे आनंद के साथ व्यतीत करना तो हमारे हाथ में है। फिर यह आपसी चक-चक, लड़ाई-झगड़े क्यों? जीवन को प्रेम-स्नेह के साथ जीएँ। हमें परमात्मा ने यह मानव जीवन दिया है, उसे जी-भर कर जीएँ। खुद भी खुश रहें और दूसरों को भी खुशियाँ बाँटें, क्योंकि खुशियाँ तो बाँटने से ही बढ़ती हैं।
सुनील कुमार माथुर
सदस्य अणुव्रत लेखक मंच, (स्वतंत्र लेखक व पत्रकार) जोधपुर, राजस्थान








