
अरे भाई…,
दिल! क्या नायाब चीज़ है।
कभी लगता है, यही हमारा सबसे बड़ा हीरो है, कभी लगता है कि ये हमारी जिंदगी का सबसे बड़ा कॉमिक विलेन है। सोचो, हर दिन सुबह उठते ही ये ‘दिल है कि मानता नहीं’ वाला सीन शुरू कर देता है। हम कहते हैं, भाई, थोड़ी समझदारी दिखा, लेकिन दिल को किसने रोका? वही है, जो ‘दिल में हो तुम’ वाली लाइन बोलते-बोलते अचानक ‘दिल टूट गया’ में बदल जाए। और ये जो हमारे बॉलीवुड वाले गाने हैं—‘दिल का रिश्ता’, ‘दिल के टुकड़े’, ‘दिल एक खाली कमरा’, ‘दिल शीशे का’—मतलब भाई, दिल रोज नया रोमांस ढूँढता है, रोज नया ड्रामा, रोज नया हादसा। कभी लगता है, ये दिल हमारे लिए है, लेकिन असल में ये तो अपने ही सिर की सैर कर रहा है।
Government Advertisement
सोचो, सुबह-सुबह ऑफिस जाते हुए ये ‘दिल करे हाय…’ वाली मूड स्विच कर देता है। हम लोग तो चाय पीकर तैयार हो रहे हैं, और दिल कहीं और ही बिज़ी है। दिन में ‘दिल का झरोखा’ खोलकर हमसे बातें करता है, शाम को ‘दिल तो बच्चा है’ बनकर अचानक सब कुछ भूल जाता है। यानि भाई, ये दिल कभी स्मार्ट नहीं, हमेशा बच्चा ही रहता है। और बात करें महिलाओं की, तो भाई, ‘दिल की इच्छा है’, ‘दिल बागबां है’… ये दिल हर वक्त ड्रामा करता रहता है। कभी लगता है कि प्यार का मौसम है, तो अचानक ‘दिल का खून हो गया’ वाला सीन लग जाता है। मतलब, इमोशन में इतना ज़ोर कि आप सोचो—ये दिल है या कोई बॉलीवुड डायरेक्टर, जो हर रोज़ नए सीन शूट कर रहा है!
हमारे समाज की बड़ी मज़ाक की बात तो ये है कि हर कोई अपने दिल की कहानी ‘दिल के अरमान हैं’, ‘दिल चीज है’, और ‘दिल का घरोंदा है’ वाली लाइन में बताता है। यानी भाई, दिखावा बड़ा जोरदार, असलियत? बस ‘दिल की समझदार’ जैसी कोई चीज़ कहीं नहीं। और तो और, हर दिल कहता है—“मैं तो पागल हूँ!” यानी समाज में सब पागल हैं, बस दिल खुला रहकर सबको कॉमिक सीन देता है। सोशल मीडिया पर तो पूछो मत! हर कोई रोज़ ‘दिल में वो आ गया’ वाली स्टोरी डालता है, और अगले ही पल ‘दिल का पता नहीं क्या है’ वाली पोस्ट डाल देता है। भाई, लगता है, अब ये दिल केवल इंस्टाग्राम का स्टार है, हमारी जिंदगी का तो कुछ बचा ही नहीं!
और सबसे मजेदार तो ये है कि गाने वाले बोलते हैं—‘दिल का आलम’, ‘दिल दर्द है’, ‘दिल ना समझ है’। सोचो, भाई, सुबह उठो, नींद से आंखें मलो, दिल आपके लिए किसी रोड मैप की तरह चलता है—एक जगह ले जाएगा, और आप सोचते रह जाओगे, भाई ये क्या हुआ? भाई, ये दिल सिर्फ पागलपन नहीं करता, कभी-कभी ये ‘दिल के सपने हैं’ वाले सीन में भी फंस जाता है। मतलब, हम सोच रहे हैं कि जिंदगी सही दिशा में जा रही है, और दिल चुपके से ‘दिल चीज है’ बनकर पूरा ड्रामा कर देता है। तो अगली बार जब कोई आपसे बोले—“मेरा दिल कहता है…”, तो हँसी रोकना मत। याद रखना:
- सुबह ये ‘दिल शीशे का’ बनकर टूट सकता है।
- दोपहर में ‘दिल का झरोखा’ खोलकर सबको चौंका सकता है।
- शाम को ‘दिल पागल है’ बनकर आपके मूड पर कब्ज़ा कर सकता है।
और हम? हम बस हँसते रहेंगे। क्योंकि ये दिल है या कोई बॉलीवुड सिनेमा का डायलॉग राइटर, जो हर रोज़ हमारी जिंदगी में नया सीन भर देता है। सबक ये है, हमारे समाज का दिल और हमारा खुद का दिल, दोनों ही कभी-कभी इतने नाटकीय होते हैं कि आप समझ ही नहीं पाते—हँसो या रोओ। लेकिन हँसी ही सबसे बड़ी दवा है, क्योंकि दिल चाहे जो भी करे, हमको उसका सच्चा ‘डायरेक्टर’ बनना ही है।








