
रचयिता — गौतमचंद बोहरा
प्रकाशक — संस्कृति कल्चरल फाउंडेशन, चेन्नई
पृष्ठ — 194 | मूल्य — ₹250
समीक्षक — सुनील कुमार माथुर, जोधपुर
गौतमचंद बोहरा द्वारा रचित “उभरते आखर” (काव्य संग्रह) में ढेरों ज्ञानवर्धक और भावनाप्रधान रचनाएँ संकलित हैं, जो कविताओं का एक शानदार गुलदस्ता प्रस्तुत करती हैं। इस संग्रह की कविताएँ गागर में सागर भरने का उत्कृष्ट उदाहरण हैं, क्योंकि इनमें जीवन की सच्चाइयों का गहन चित्रण मिलता है।
कवि ने अपने हृदय से निकली भावनाओं को विभिन्न शीर्षकों जैसे — उभरते आखर, मटरगश्ती, श्रृंगार, सौगात, एकतरफा प्यार, नारी सब पर भारी, चांद और चांदनी, पागलपन इश्क का, भाईचारा, स्वार्थ, नारी तू न हारी, वक्त के साथ, शराब बड़ी खराब — आदि कविताओं के माध्यम से जन-जन तक पहुँचाने का प्रयास किया है।
बोहरा ने जीवन के लगभग हर पहलू को अपनी कविताओं में समेटा है। उन्होंने अपने अनुभवों और संवेदनाओं को विविध रसों — व्यंग्य, श्रृंगार, करूणा, सांस्कृतिक, धार्मिक, वीर रस, प्राकृतिक सौंदर्य और देशभक्ति — के माध्यम से प्रस्तुत किया है। उनकी भाषा सरल, प्रवाहमयी और आम पाठक के हृदय को छूने वाली है। कवि की यही सहज अभिव्यक्ति इस संग्रह को विशेष बनाती है।
रचनाकार ने अपनी लेखनी से समाज को नई सोच और दिशा देने की भरपूर कोशिश की है। उनके पीछे मूल उद्देश्य यह है कि साहित्य साधना निरंतर विकसित होती रहे और पाठकों को मानवीय मूल्यों से जोड़े रखे।
समीक्षक : सुनील कुमार माथुर
सदस्य, अणुव्रत लेखक मंच, स्वतंत्र लेखक व पत्रकार, जोधपुर, राजस्थान









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