
सुनील कुमार माथुर
वक्त से कभी कोई हारा या जीता नहीं है, वक्त ने तो सदैव कुछ न कुछ नया हमें हर वक्त सिखाया ही है। इसलिए जीवन में जितना हो सके उतना समय का सदुपयोग कीजिए। ईश्वर की आराधना कीजिए। अगर हम किसी के जीवन में खुशियाँ लाने का माध्यम बनते हैं तो ये भी ईश्वर की आराधना से कम नहीं है। इसलिए हर वक्त स्वस्थ रहिए और मस्त रहिए, साथ ही दूसरों को भी स्वस्थ और मस्त रहने दीजिए।
ईश्वर की आराधना केवल मन्दिर जाने से पूर्ण नहीं होती, अपितु हम जो परोपकार के कार्य करते हैं या जो श्रेष्ठ, रचनात्मक व सकारात्मक कर्म करते हैं, वह भी ईश्वर की आराधना है। अतः अपने से बड़ों, बुजुर्गों व अपने माता-पिता की निस्वार्थ भाव से सेवा करते रहिए, क्योंकि यह भी ईश्वर की ही आराधना है। आज के समय में माता-पिता व बड़े बुजुर्गों को समय देना, उनकी बातें सुनना, उनका मान-सम्मान करना — यह भी ईश्वर की आराधना का ही एक हिस्सा है। और अगर आप सच्चे मन से ऐसा करते हैं तो समझिए कि ईश्वर आपसे प्रसन्न हैं। आप मन्दिर न जाएँ तो भी ईश्वर ने आपकी आराधना को स्वीकार कर लिया है।
सुनील कुमार माथुर
33 वर्धमान नगर, शोभावतों की ढाणी, खेमे का कुआँ, पाल रोड, जोधपुर, राजस्थान







