
बघेली बोली और हिंदी की रचनाओं से गूंजा कवि सम्मेलन, देर रात तक झूमते रहे श्रोता
रीवा/देवतालाब। भगवान शिव की पवित्र नगरी देवतालाब के समीपवर्ती ग्राम गनिगवां में गुरुवार की शाम साहित्यिक वातावरण तब और प्रखर हो उठा जब मां दुर्गा उत्सव समिति बजरंग दल गनिगवां के तत्वावधान में एक भव्य कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया। शाम सात बजे आरंभ हुए इस काव्य समारोह ने रात देर तक श्रोताओं को कविता, गीत और हास्य की लहरों में डुबोए रखा। कार्यक्रम की अध्यक्षता बघेली बोली के वरेण्य कवि हरिनारायण सिंह “हरीश” ने की, जबकि मंच पर मुख्य अतिथि के रूप में कमल कुमार सिंह की गरिमामयी उपस्थिति रही।
कार्यक्रम का शुभारंभ कवि सत्येन्द्र शुक्ल “सजग” ने मां वाणी की वंदना के साथ किया, जिसने पूरे वातावरण को भक्ति और साहित्य की भावना से ओत-प्रोत कर दिया। सम्मेलन में शामिल कवियों ने अपनी-अपनी विशिष्ट शैली से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया।
- हास्य कवि कार्तिकेय शुक्ला ने अपनी बघेली कविताओं से उपस्थित जनसमूह को ठहाकों से लोटपोट कर दिया।
- गीतकार अजय अंजाना ने एक से बढ़कर एक मुक्तक और भक्ति-गीत प्रस्तुत कर माहौल को भावनाओं से भर दिया।
- कवि रोशनलाल सिंह ने सामाजिक मुद्दे पर आधारित अपनी रचना ‘दहेज प्रथा और बेटियों’ पर मार्मिक कविता सुनाकर सबका दिल जीत लिया।
- वहीं सत्येन्द्र सजग ने अपने समसामयिक काव्यपाठ से समाज की विसंगतियों को उजागर करते हुए लोगों को सोचने पर विवश कर दिया।
🎙️ कवि आशीष तिवारी ‘निर्मल’ ने संभाला संचालन, हंसी और व्यंग्य से बांधा समां
कवि सम्मेलन का संचालन कवि आशीष तिवारी “निर्मल” ने अपने सधे हुए अंदाज़ और तीखे व्यंग्यों के साथ किया। उनके हास्य-प्रसंगों और चुटीली टिप्पणियों ने पूरे कार्यक्रम को जीवंत बनाए रखा। कार्यक्रम के समापन अवसर पर आयोजन समिति ने सभी आमंत्रित कवियों को शॉल, श्रीफल और प्रतीक चिह्न भेंटकर सम्मानित किया। समिति सदस्यों ने घोषणा की कि ऐसे कवि सम्मेलनों का आयोजन हर वर्ष नियमित रूप से किया जाएगा, ताकि देवतालाब की यह सांस्कृतिक परंपरा और अधिक सशक्त हो सके।
आयोजन स्थल पर सुभाष गुप्ता, अजय सोनिया, अरविंद गुप्ता, लल्लन कोल, राजकुमार सोंधिया, प्रीतम बंसल सहित हजारों की संख्या में श्रद्धालु और साहित्यप्रेमी उपस्थित रहे। कवियों की एक-एक पंक्ति पर तालियों की गड़गड़ाहट गूंजती रही, और देर रात तक वातावरण काव्यरस में डूबा रहा।
🕉️ देवभूमि की धरा पर शब्दों की आरती
देवतालाब, जो स्वयं भगवान शिव की नगरी के रूप में आस्था का केंद्र है, उस पवित्र धरा पर जब काव्य, भक्ति और हास्य का संगम हुआ तो मानो शब्दों की आरती पूरे वातावरण में गूंज उठी। कार्यक्रम ने यह साबित किया कि रीवा और बुंदेलखंड की माटी में साहित्य की जड़ें आज भी गहरी हैं और यहां की बोली-बानी में संवेदना आज भी जीवित है।