
मेरठ। जनपद में लावारिस कुत्तों का आतंक दिनों-दिन बढ़ता जा रहा है। हालत यह है कि शहर का कोई भी इलाका इस समस्या से अछूता नहीं है। मोहल्लों से लेकर पॉश कॉलोनियों तक लोग रोज़ कुत्तों के हमलों का शिकार हो रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट तक आदेश दे चुका है कि नगर निगम नियमित रूप से अभियान चलाए और कुत्तों की नसबंदी सुनिश्चित करे। मगर नगर निगम के जिम्मेदार अफसरों पर इसका कोई असर नहीं दिख रहा।
परतापुर स्थित एनिमल बर्थ कंट्रोल सेंटर (एबीसीसी) पर की गई चार दिन की पड़ताल ने निगम की लापरवाही और घपलेबाज़ी दोनों का पर्दाफाश कर दिया। यहां रजिस्टर तक कई दिन खाली पाए गए और बाद में अचानक दर्जनों कुत्तों की एंट्री कर निगम से हर महीने 10–12 लाख रुपये तक का भुगतान करा लिया जाता है।
पड़ताल में क्या निकला सामने?
चार दिनों तक अलग-अलग दिन केंद्र पर जाकर जब स्थिति देखी गई तो तस्वीर साफ हुई।
- पहला दिन: दो कर्मचारी तो मिले लेकिन कोई डॉक्टर नहीं। लगभग 80 कुत्ते मौजूद थे और नसबंदी का रजिस्टर अधूरा था।
- दूसरा दिन: नसबंदी कक्ष पर ताला लटका मिला। कोई प्रमाण नहीं मिला कि यहां कोई प्रक्रिया चल रही है। कर्मचारी सवालों से बचते रहे।
- तीसरा दिन: डॉ. पीयूष शर्मा मिले। उन्होंने साफ कहा कि नगर से कुत्ते लाए ही नहीं जा रहे, इसलिए नसबंदी रुकी हुई है। रिकॉर्ड अधूरा था।
- चौथा दिन: डॉ. केशव कुमार और चार कर्मचारी मिले। रजिस्टर में 15 कुत्तों की नसबंदी दर्ज मिली। डॉक्टर का कहना था कि रजिस्टर बाद में अपडेट होता है।
सुप्रीम कोर्ट का आदेश भी ताक पर
नियम यह है कि नगर निगम रोज़ाना अभियान चलाए, आवारा कुत्तों को पकड़े, नसबंदी करे, एंटी रेबीज का इंजेक्शन लगाए और फिर उन्हें उसी इलाके में छोड़ दे। लेकिन हकीकत यह है कि निगम महीने में सिर्फ तीन-चार दिन कुत्ते पकड़ता है। उन्हें सेंटर पर लाकर छोड़ दिया जाता है—न नसबंदी, न इंजेक्शन, न दोबारा छोड़ने की प्रक्रिया। कई बार तो ये कुत्ते सेंटर पर ही भूखे-प्यासे पड़े रहते हैं।
निगम दावा करता है कि हर महीने 10 से 12 लाख रुपये कुत्तों की नसबंदी, एंटी रेबीज इंजेक्शन और खाने-पीने की व्यवस्था पर खर्च किए जाते हैं। वर्ष 2025-26 के लिए निगम ने दो करोड़ रुपये का बजट रखा है। डेढ़ लाख आवारा कुत्तों का आंकड़ा बताकर निगम हापुड़ रोड स्थित तिरंगा गेट के पास दूसरा एबीसीसी सेंटर खोलने की तैयारी में है, जबकि परतापुर का मौजूदा सेंटर ही ढंग से नहीं चल रहा।
लोगों का जीना मुहाल
शास्त्रीनगर, पांडवनगर, ब्रह्मपुरी, गंगानगर, टीपीनगर और माधवपुरम जैसी कॉलोनियों में लोग आवारा कुत्तों से परेशान हैं। जिला अस्पताल में हर दिन 120 से 150 लोग एंटी रेबीज वैक्सीन लगवाने पहुंचते हैं। कुत्तों के हमलों से अब तक दर्जनों मौतें हो चुकी हैं।
नगर स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. अमर सिंह ने माना कि निरीक्षण के दौरान सेंटर पर कई लापरवाहियां मिलीं। डॉक्टर की अनुपस्थिति की भी शिकायतें आई हैं। उनका कहना है कि शहर में कुत्तों की संख्या बहुत अधिक है, इसलिए दूसरा सेंटर खोला जाएगा। परतापुर सेंटर चलाने वाली कंपनी को नोटिस देकर जवाब मांगा गया है और कार्रवाई की जाएगी।
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नगर निगम का रवैया बेहद चौंकाने वाला है। बजट में करोड़ों रुपये आवंटित हैं, लेकिन जमीनी हकीकत शून्य है। सवाल यह है कि जब मौजूदा सेंटर ही ढंग से नहीं चल रहा, तो दूसरा सेंटर खोलने की तैयारी आखिर क्यों? क्या यह सिर्फ ठेकेदारों को फायदा पहुँचाने का नया बहाना है? जनता को जवाब चाहिए।