
✍️ डॉ. सत्यवान सौरभ
हरियाणा के 18 सरकारी स्कूलों में 12वीं का रिजल्ट शून्य प्रतिशत रहा, जो राज्य प्रायोजित शैक्षिक विफलता की गंभीर पहचान है। यह सिर्फ छात्रों की असफलता नहीं, बल्कि पूरे शिक्षा तंत्र की नाकामी है — जिसमें शिक्षक, संसाधन और जवाबदेही की कमी है। सरकार को पहले से इन स्कूलों की हालत पता थी, फिर भी कोई सुधार नहीं हुआ। यह स्थिति शिक्षा के अधिकार के साथ धोखा है और गरीब छात्रों के सपनों की हत्या।
हरियाणा के सरकारी स्कूलों से आई यह शर्मनाक खबर बताती है कि 18 स्कूलों में एक भी छात्र पास नहीं हुआ। यह सिर्फ रिजल्ट नहीं, एक पीढ़ी के सपनों की सामूहिक हत्या है।
जब शिक्षा नहीं, तो अधिकार कैसा?
संविधान में शिक्षा को मौलिक अधिकार माना गया है। लेकिन जब स्कूल से एक भी छात्र पास नहीं होता, तो सवाल उठता है कि क्या यह अधिकार केवल दिखावा है? क्या बच्चों को केवल स्कूल भेजना ही पर्याप्त है, या उन्हें सही शिक्षा देना जरूरी है?
पहले से सूचीबद्ध “खराब स्कूल”, फिर भी कोई सुधार नहीं!
ये 18 वही स्कूल हैं जो पहले से राज्य के सबसे खराब प्रदर्शन करने वाले स्कूलों की सूची में थे। लेकिन न तो शिक्षक बढ़ाए गए, न प्रयोगशाला या पुस्तकालय स्थापित किए गए। कई स्कूलों में तो विज्ञान और गणित के शिक्षक भी नहीं हैं — ऐसे में छात्र कैसे सफल होंगे?
सरकारी स्कूल या सज़ा घर?
जहां किताबें, शिक्षक और सही वातावरण नहीं, वहां बच्चों को भेजना शिक्षा नहीं, मानसिक शोषण है। कई सरकारी स्कूल केवल ‘मिड डे मील’ केंद्र बनकर रह गए हैं। क्या यही था शिक्षा का उद्देश्य?
फेल छात्र नहीं, फेल सिस्टम है
फेल वे छात्र नहीं, बल्कि वे शासन-प्रणाली है जो शिक्षा को प्राथमिकता देने का दावा करती है लेकिन जमीनी स्तर पर कुछ नहीं करती। फेल वे नेता और अफसर हैं जो सत्ता में आकर शिक्षा के मुद्दे पर आंखें मूंद लेते हैं।
जब नेताओं के बच्चे विदेश में पढ़ें, आम बच्चों का क्या?
कई नेताओं और अफसरों के बच्चे महंगे निजी या विदेशों के स्कूलों में पढ़ते हैं, जबकि गरीब बच्चे खराब सरकारी स्कूलों में फंसे हैं। यह दोहरा मापदंड लोकतंत्र के लिए शर्मनाक है।
सिर्फ रिजल्ट खराब नहीं, भरोसा टूटा है
जब छात्र मेहनत करते हैं और उम्मीदें पालते हैं, लेकिन स्कूल में शिक्षक न हों, पाठ्यक्रम अधूरा रहे, तो उनका भरोसा टूट जाता है। शिक्षा केवल रोजगार नहीं, आत्मगौरव और आत्मनिर्भरता की कुंजी है।
क्या सिर्फ मिड डे मील से चलेगा स्कूल?
अधिकारी मिड डे मील के वितरण पर ध्यान देते हैं, लेकिन यह नहीं देखते कि पढ़ाई क्या हुई, पाठ्यक्रम पूरा हुआ या नहीं, शिक्षक आए भी या नहीं।
18 स्कूल नहीं, 18 चेतावनियाँ हैं ये
यह 18 स्कूल अलार्म बेल हैं। अगर सुधार नहीं हुआ, तो संख्या बढ़ेगी। आज हिसार और झज्जर हैं, कल अन्य जिले भी इससे अछूते नहीं रहेंगे।
समाधान क्या है?
- स्थायी और प्रशिक्षित शिक्षकों की नियुक्ति आवश्यक है।
- प्रत्येक जिले में स्कूलों की निष्पक्ष शैक्षिक जाँच हो।
- अभिभावक और स्थानीय समुदाय की भागीदारी सुनिश्चित की जाए।
- नेताओं को भाषण नहीं, ठोस कार्य करना होगा।
- तकनीक का सही और सुनियोजित उपयोग हो।
सवाल पूछना ज़रूरी है
जब पूरा स्कूल फेल होता है, तो सवाल उठाना चाहिए — शिक्षक क्यों नहीं थे? सरकार ने क्या किया? अधिकारी अपनी तनख्वाह किस काम के लिए लेते हैं? अगर सवाल नहीं पूछेंगे, तो सिस्टम कल हमारे बच्चों को भी निगल जाएगा।
शिक्षा की हत्या पर चुप्पी नहीं चलेगी
हरियाणा जैसा राज्य, जो खेल और सैन्य सेवा में अग्रणी है, वहां शिक्षा की यह हालत एक विडंबना है। अगर हम इस पर चुप रहेंगे, तो अगली पीढ़ी हमें माफ नहीं करेगी। जब नेता शिक्षा क्रांति की बात करें, तो इन्हीं 18 स्कूलों का रिपोर्ट कार्ड उनके सामने होना चाहिए। यह शिक्षा का अधिकार नहीं, शिक्षा से धोखा है। यह छात्रों की विफलता नहीं, सिस्टम का अपराध है। अब समय है — बोलने, सवाल पूछने और जवाब मांगने का।