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लिखती रही लिखती रही यादों के स्वर्ण अक्षरों में, किताबें हो गई है आज वो पूरी बस बच गया है आख़री पन्ना। बचा हुआ ये आखिरी पन्ना तुम्हारे ही नाम करतीं हूं, तुम मानो या नहीं मानो… #डा उषा किरण श्रीवास्तव, मुजफ्फरपुर, बिहार
[/box]किताबें लिख रही थी तब
बहुत थे चाहने वाले,
बस कुछ पल के लिए
वो मुस्कुराये चल दिए आगे।
राह मे चलते हुए उसने
किया मुझको ईशार भी,
कुछ सोंच में पड़कर
मेरा मन डगमगाया भी।
लिखती रही लिखती रही
यादों के स्वर्ण अक्षरों में ,
किताबें हो गई है आज वो पूरी
बस बच गया है आख़री पन्ना।
बचा हुआ ये आखिरी पन्ना
तुम्हारे ही नाम करतीं हूं,
तुम मानो या नहीं मानो
तुम्ही को मैं बदनाम करती हूं।









