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आपके विचार

समाज सेवा हेतु धन जरूरी नहीं

शर्म किस चिड़िया का नाम है। नारी को ईश्वर ने सुन्दरता प्रदान की है जो ठीक बात है, लेकिन सुन्दरता का यह अर्थ तो नहीं है कि हम अंग प्रदर्शन ही करें। छोटे-छोटे वस्त्र धारण करे, पारदर्शी वस्त्र धारण करें। कहने का तात्पर्य यह है कि हम हमारी सभ्यता और संस्कृति व मर्यादा को कभी न भूले़ एवं उनकी गरिमा को बनाए रखें। #सुनील कुमार माथुर, जोधपुर (राजस्थान)

समाज सेवा के लिए धन का होना आवश्यक नहीं है आप बिना धन के भी समाज की सेवा कर सकते हैं बस जरूरत है तो सेवा करने की भावना का होना। एक न एक दिन सभी को इस नश्वर संसार से जाना है तो क्यों न हम स्वर्गाश्रम में पौधारोपण करे, वहां साफ सफाई करें और साफ सफाई बनाए रखने के लिए लोगों को प्रेरित करें।‌ वहां दीवारों पर लगे जाले साफ करें। अगर आप तनिक साधन सम्पन्न हैं तो वहां पंखें लगवायें, आवश्यकता के अनुसार सामान उपलब्ध करायें, हो सकें तो वहां पत्थर की बैंचों की व्यवस्था करे ताकि उनकी बार बार मरम्मत कराने की समस्या न आयें।‌

टीन शेड लगवाये, ठण्डे पानी व गर्म पानी की व्यवस्था करें, सार सम्भाल के लिए स्थाई चौकीदार की व्यवस्था करें। कभी भी यह विचार न करे कि यह कार्य समाज की संस्थाओं का हैं। इसके जिम्मेदार लोगों की जिम्मेदारी है। वे यह कार्य क्यों नहीं करते। अरे मेरे भाई, समाज के जिम्मेदार नागरिक या संस्थाएं ये कार्य कर देती तो यह बात न कहनी पडती। वे नकारा साबित हो रहे हैं तब यह सब कुछ कहना पड रहा हैं। जिम्मेदारों की अनदेखी के कारण ही तो स्वर्गाश्रम जैसी जगहों पर भी अनदेखी का नजारा देखने को मिल रहा है।

अगर हमारे समाज की संस्थाओं में जरा सा भी निस्वार्थ भाव से सेवा करने का भाव होता तो यह कटु सत्य प्रकट करने की जरुरत नहीं होती। सेवा, समर्पण, धैर्य, त्याग, सहनशीलता, परोपकार जैसे भावों से जीवन कंचन की तरह से चमकता हैं । जहां सेवा हैं, धर्म-कर्म हैं, आदर्श संस्कार हैं, व्यक्ति को ज्ञानवान, चरित्रवान व संस्कारवान बनाने की शिक्षा हो तो वहीं स्वर्ग हैं। जहां नारी का सम्मान हो, उसके रचनात्मक कार्यों का सम्मान हो, उसकी भावनाओं का सम्मान हो, वहीं तो आदर्श समाज कहलाता है। लेकिन आज आधुनिकता के नाम पर हम यह सब बातें भूल रहे हैं और अपनी ही सभ्यता और संस्कृति को मटियामेट कर रहे हैं।

अब तो घर की बेटियां इतनी हद पार कर गई कि ढोल बजाने वाले के ढोल पर बैठ कर वह आधुनिकता के नाम पर गाने व गीत गा रही हैं और ढोल बजाने वाले उन बेटियों को छूकर आनन्द ले रहे हैं जो बेहुदा प्रदर्शन है जिस पर तत्काल रोक लगानी चाहिए। फिर न कहना कि हमारी बहन – बेटियों को लोग गलत निगाह से देखते हैं, उसे येन केन प्रकारेण छूने का प्रयास कर रहे हैं। हम तो बस आपको बुराई से बचाने के लिए सजग व सतर्क कर सकते हैं। भले ही आप हमारी बात माने या न मानें। यह आप पर निर्भर करता है।

लोभ, लालच, आधुनिकता के नाम पर अंग प्रदर्शन ने तो आज सारी हदें पार कर गई है चूंकि रोकने टोकने वाला कोई नहीं है। अगर यह कहा जाये कि पूरे कुएं में ही भांग पडी हैं तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। अंग प्रदर्शन को एक फैशन कहा जा रहा हैं जबकि वह भद्दापन हैं। जो हमारी नैतिक व चारित्रिक मूल्यों का पतन ही हैं। दुःख इस बात का है कि सिनेमा व टी वी सीरियलों में जम कर अंग प्रदर्शन हो रहा हैं। मगर कोई रोकने वाला नहीं है। सब मजे से यह सब कुछ परिवारजनों के साथ देख रहे है।

शर्म किस चिड़िया का नाम है। नारी को ईश्वर ने सुन्दरता प्रदान की है जो ठीक बात है, लेकिन सुन्दरता का यह अर्थ तो नहीं है कि हम अंग प्रदर्शन ही करें। छोटे-छोटे वस्त्र धारण करे, पारदर्शी वस्त्र धारण करें। कहने का तात्पर्य यह है कि हम हमारी सभ्यता और संस्कृति व मर्यादा को कभी न भूले़ एवं उनकी गरिमा को बनाए रखें।


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5 Comments

  1. निःस्वार्थ भाव और अच्छे संस्कार समाज की सेवा के लिए ज़रूरी है । बहुत ही महत्वपूर्ण आलेख है ।

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