धर्म-संस्कृति

14 त्रिभुवन की उपासना है अनंत चतुर्दशी

14 त्रिभुवन की उपासना है अनंत चतुर्दशी… भगवान अनंत ने सृष्टि के आरंभ में चौदह लोकों की रचना की थी। भगवान् श्रीहरि विष्णु द्वारा 1. तल, 2. अतल, 3. वितल, 4. सुतल, 5. तलातल, 6. रसातल, 7. पाताल, 8. भू, 9. भुवः, 10. स्वः, 11. जन, 12. तप,13. सत्य, 14. मह कुल चौदह लोक, त्रिभुवन का निर्माण किया गया था।  #सात्येन्द्र कुमार पाठक

भारतीय संस्कृति में भगवान विष्णु द्वारा स्थापित 14 त्रिभुवन एवं अपनी रूप में जनकल्याण तथा संस्कृति की रक्षा के लिए निर्माण किया गया था।भाद्रपद, शुक्लपक्ष की चतुर्दशी को सनातन धर्म में अनन्त चतुर्दशी और जैन धर्म में अनंत चौदस, अनंतसुत्रोत्सव कहा जाता है। पाण्डव जुए में राज-पाट हारकर वन में कष्ट भोगने के दौरान भगवान श्रीकृष्ण ने पांडवों को अनन्त चतुर्दशीका व्रत करने की सलाह दी थी। धर्मराज युधिष्ठिर ने अपने भाइयों तथा द्रौपदीके साथ पूरे विधि-विधान से यह व्रत किया तथा अनन्त सूत्र धारण किया। अनन्तचतुर्दशी-व्रतके प्रभाव से पाण्डव सब संकटों से मुक्त हुए थे। व्रत-विधान-व्रतकर्ता प्रात:स्नान करके व्रत का संकल्प करें। शास्त्रों में यद्यपि व्रत का संकल्प एवं पूजन किसी पवित्र नदी या सरोवर के तट पर करने का विधान है, तथापि ऐसा संभव न हो सकने की स्थिति में घर में पूजागृह की स्वच्छ भूमि पर कलश स्थापित करें।

कलश पर शेषनाग की शैय्यापर लेटे भगवान विष्णु की मूíत अथवा चित्र को रखें। उनके समक्ष चौदह ग्रंथियों (गांठों) से युक्त अनन्तसूत्र (डोरा) रखें। इसके बाद ॐ अनन्तायनम: मंत्र से भगवान विष्णु तथा अनंतसूत्रकी षोडशोपचार-विधिसे पूजा करें। पूजनोपरांत अनन्त सूत्र को मंत्र पढकर पुरुष अपने दाहिने हाथ और स्त्री बाएं हाथ में बांध लेना चाहिए।  अनंन्तसागरमहासमुद्रेमग्नान्समभ्युद्धरवासुदेव। अनंतरूपेविनियोजितात्माह्यनन्तरूपायनमोनमस्ते॥ अनंतसूत्रबांध लेने के पश्चात ब्राह्मण को नैवेद्य में निवेदित पकवान देकर स्वयं सपरिवार प्रसाद ग्रहण करे। अनंत कथा – सत्ययुग में सुमन्तु के मुनि की पुत्री शीलाअत्यंत सुशील थी। सुमन्तु मुनि ने शीला का विवाह कौण्डिन्यमुनि से किया। कौण्डिन्यमुनि अपनी पत्नी शीला को लेकर जब ससुराल से घर वापस लौट रहे थे, तब रास्ते में नदी के किनारे स्त्रियां अनन्त भगवान की पूजा करते दिखाई पडीं। शीला ने अनन्त-व्रत का माहात्म्य जानकर उन स्त्रियों के साथ अनंत भगवान का पूजन करके अनन्तसूत्रबांध लिया।

इसके फलस्वरूप थोडे ही दिनों में उसका घर धन-धान्य से पूर्ण हो गया। एक दिन कौण्डिन्य मुनि की दृष्टि अपनी पत्नी के बाएं हाथ में बंधे अनन्तसूत्रपर पडी, जिसे देखकर वह भ्रमित हो गए और उन्होंने पूछा-क्या तुमने मुझे वश में करने के लिए यह सूत्र बांधा है? शीला ने विनम्रतापूर्वक उत्तर दिया-जी नहीं, यह अनंत भगवान का पवित्र सूत्र है। परंतु ऐश्वर्य के मद में अंधे हो चुके कौण्डिन्यने अपनी पत्नी की सही बात को गलत समझा और अनन्तसूत्रको जादू-मंतर वाला वशीकरण करने का डोरा समझकर तोड दिया तथा उसे आग में डालकर जला दिया। इस जघन्य कर्म का परिणाम शीघ्र ही सामने आ गया। उनकी सारी संपत्ति नष्ट हो गई। दीन-हीन स्थिति में जीवन-यापन करने में विवश हो जाने पर कौण्डिन्यऋषि ने अपने अपराध का प्रायश्चित करने का निर्णय लिया। वे अनन्त भगवान से क्षमा मांगने हेतु वन में चले गए। उन्हें रास्ते में मिलता वे उससे अनन्तदेवका पता पूछते जाते थे। खोजने पर कौण्डिन्यमुनि को जब अनन्त भगवान का साक्षात्कार नहीं हुआ, तब वे निराश होकर प्राण त्यागने को उद्यत हुए।

तभी एक वृद्ध ब्राह्मण ने आकर उन्हें आत्महत्या करने से रोक दिया और एक गुफामें ले जाकर चतुर्भुज अनन्तदेव का दर्शन कराया। भगवान अनंत ने मुनि से कहा-तुमने जो अनन्तसूत्रका तिरस्कार किया है, यह सब उसी का फल है। इसके प्रायश्चित हेतु तुम चौदह वर्ष तक निरंतर अनन्त-व्रत का पालन करो। इस व्रत का अनुष्ठान पूरा हो जाने पर तुम्हारी नष्ट हुई सम्पत्ति तुम्हें पुन:प्राप्त हो जाएगी और तुम पूर्ववत् सुखी-समृद्ध हो जाओगे। कौण्डिन्यमुनि ने भगवान अनंत आज्ञा को सहर्ष स्वीकार कर लिया। भगवान ने आगे कहा-जीव अपने पूर्ववत् दुष्कर्मोका फल ही दुर्गति के रूप में भोगता है। मनुष्य जन्म-जन्मांतर के पातकों के कारण अनेक कष्ट पाता है। अनन्त-व्रत के सविधि पालन से पाप नष्ट होते हैं तथा सुख-शांति प्राप्त होती है। कौण्डिन्यमुनि ने चौदह वर्ष तक अनन्त-व्रत का नियमपूर्वक पालन करके खोई हुई समृद्धि को पुन:प्राप्त कर लिया।महाभारत के अनुसार महाभारत काल से अनंत चतुर्दशी व्रत की शुरुआत हुई। यह भगवान विष्णु का दिन माना जाता है।

भगवान अनंत ने सृष्टि के आरंभ में चौदह लोकों की रचना की थी। भगवान् श्रीहरि विष्णु द्वारा 1. तल, 2. अतल, 3. वितल, 4. सुतल, 5. तलातल, 6. रसातल, 7. पाताल, 8. भू, 9. भुवः, 10. स्वः, 11. जन, 12. तप,13. सत्य, 14. मह कुल चौदह लोक, त्रिभुवन का निर्माण किया गया था। भगवान् श्रीहरि विष्णु ने 1. अनंत, 2. ऋषिकेश, 3. पद्मनाभ, 4. माधव, 5. वैकुंठ, 6. श्रीधर, 7. त्रिविक्रम, 8. मधुसुदन, 9. वामन, 10. केशव, 11. नारायण, 12. दामोदर, 13. गोविन्द, 14. श्रीहरि नाम से विभिन्न त्रिभुवन में विराजमान है। लोकों का पालन और रक्षा करने के लिए भगवान विष्णु चौदह रूपों में प्रकट हुए थे। अनंत पूजा में श्री विष्णु सहस्त्रनाम स्तोत्र का पाठ करने पर समस्त मनोकामना पूर्ण, धन-धान्य, सुख-संपदा और संतान आदि की कामना से अनंत व्रत किया जाता है। अनंत चतुर्दशी के उपासक 14 सूत्र गांठ का अनंत, पंचामृत, 14 फल, 14 पकवान आदि पुष्प अर्पित करते हैं। बिहार, उत्तरप्रदेश एवं झारखंड तथा भारतीय लोग भगवान अनंत की उपासना करते है। बिहार के जहानाबाद जिले के बराबर पर्वत समूह के सूर्यान्क गिरि पर अनंत चतुर्दशी के अवसर पर श्रद्धालुओं द्वारा विशेष पूजा की जाती है।

सृष्टिकर्ता है देव शिल्पी विश्वकर्मा


14 त्रिभुवन की उपासना है अनंत चतुर्दशी... भगवान अनंत ने सृष्टि के आरंभ में चौदह लोकों की रचना की थी। भगवान् श्रीहरि विष्णु द्वारा 1. तल, 2. अतल, 3. वितल, 4. सुतल, 5. तलातल, 6. रसातल, 7. पाताल, 8. भू, 9. भुवः, 10. स्वः, 11. जन, 12. तप,13. सत्य, 14. मह कुल चौदह लोक, त्रिभुवन का निर्माण किया गया था।  #सात्येन्द्र कुमार पाठक

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