साहित्य हमारी संस्कृति का अभिन्न अंग : माथुर

साहित्यकार भी समाज का एक हिस्सा है जो दिन रात समाज के हित की और राष्ट्र के विकास व उत्थान की बातों को लेकर चिंतन मनन करता रहता हैं। वह अपनी तमाम जिम्मेदारियों के साथ ही साथ श्रेष्ठ साहित्य सृजन कर समाज को एक नई दशा और दिशा प्रदान करता है। #प्रस्तुतकर्ता: विशेष संवाददाता, जोधपुर (राजस्थान)
श्रेष्ठ साहित्य भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग है जिसके संरक्षण की आज नितांत आवश्यकता है। हमारा साहित्य ही वह विधा है जिसमें विविधता में भी एकता देखने को मिलती हैं और साहित्य ही हमारे देश की अमूल्य धरोहर है जिसको बचाना हम सबका दायित्व है। साहित्य बचेगा तो देश समृद्ध होगा और खुशहाल होगा। यह उद् गार जोधपुर के जाने-माने वरिष्ठ साहित्यकार और स्वतंत्र पत्रकार सुनील कुमार माथुर ने एक साक्षात्कार में व्यक्त किये.
प्रश्न: आज बाजार में बुक स्टालों पर साहित्यिक पत्र-पत्रिकाएं कम ही देखने को मिल रही हैं, इसका क्या कारण हैं?
माथुर: कोरोना काल क्या आया देश के हालात ही बदल दिए। आज की युवाशक्ति मोबाइल पर आनलाईन अध्ययन कर रही है। वह कह रही हैं कि जब गूगल पर ही सब कुछ उपलब्ध हैं तो फिर इन किताबों एवं पुस्तकों का क्या औचित्य है। लेकिन उन्हें इस बात का ज्ञान नहीं है कि जब साहित्यिक पत्र पत्रिकाओं की प्रर्दशनी लगाई जाती हैं तो पाठकों द्वारा उन्हें खूब सराहा जाता हैं। साहित्य को सहेजना और आगे बढाना भी एक अनोखी व अनूठी कला हैं।
साथ ही साथ यह हमारी संस्कृति का अभिन्न अंग व हिस्सा हैं। अतः युवाओं को चाहिए कि वे साहित्य से जुडकर लेखन कला को आगे बढायें। चूंकि साहित्य हमें श्रेष्ठ जीवन व्यतीत करना सीखाता है। साहित्य है तो कल हैं। माथुर ने बताया कि साहित्य हमेंशा प्रकृति और मानव जीवन को संतुलित रखता है। साहित्य ही वह उत्तम साधन है जिसके जरिए एक साहित्यकार अपनी कल्पनाओं को जन जन तक पहुंचाने का कार्य करता हैं। अतः हर वाचनालयों और पुस्तकालयों में साहित्यिक पत्र पत्रिकाएं मंगाई जानी चाहिए।
प्रश्न: साहित्य के प्रचार-प्रसार के लिए क्या किया जाना चाहिए?
माथुर: साहित्यिक पत्र पत्रिकाओं के प्रचार-प्रसार के लिए साहित्य अकादमी और स्थानीय सरकारों व स्थानीय भामाशाहों को चाहिए कि वे लेखकों, रचनाकारों व साहित्यकारो से समय समय पर सम्पर्क कर उनकी रचनाओं का संकलन प्रकाशित करावें व उन्हें लागत मूल्य पर बेच कर जन जन तक पहुंचाने का प्रयास करें तभी साहित्य का व्यापक प्रचार-प्रसार होगा व साहित्य सृजन का कार्य निर्बाध रूप से चलता रहेगा। वही दूसरी ओर रचनाकारों को प्रोत्साहन भी मिलेगा।
प्रश्न: आपकी नजर में साहित्य संरक्षण के लिए क्या किया जाना चाहिए?
माथुर: साहित्य संरक्षण के लिए स्थानीय सरकारें, भामाशाह साहित्यकारों को समय समय पर प्रोत्साहन राशि उपलब्ध कराये। वही पत्र पत्रिकाओं के सम्पादक मंडल को भी चाहिए कि वे रचनाकारों को उनकी प्रकाशित रचनाओं पर पारिश्रमिक और लेखकीय प्रति निशुल्क उपलब्ध कराये ताकि रचनाकारों को आर्थिक सम्बल मिल सके।
प्रश्न: वर्तमान समय में नारी सशक्तिकरण की बातें तो जोर शोर के साथ हो रही हैं, वही दूसरी ओर आये दिन नारी पर अत्याचार हो रहे हैं। इस बारे में आपका क्या कहना हैं?
माथुर: हां, आपकी बात से मैं सहमत हूं। लेकिन इस बारे में केवल कानून बना देना ही पर्याप्त नहीं है अपितु कानून का कड़ाई से पालन भी होना चाहिए। वहीं दूसरी ओर पुरूषों को अपनी मानसिकता को भी बदलना होगा। नारी कोई पैर की जूती नहीं है। वह भी समाज का एक अभिन्न अंग है। उसका सम्मान करना चाहिए। हमारे शास्त्रों में नारी को देवी, पूज्यनीय, वंदनीय बताया गया है फिर जुल्म व अत्याचार क्यों। आज तो नारी हर क्षेत्र में पुरूषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम कर रही हैं। आज भारत के सर्वोच्च पद राष्ट्रपति के पद पर भी नारी द्रौपदी मुर्मु कार्यरत हैं जो कुशलतापूर्वक कार्य कर रही हैं।
प्रश्न: क्या साहित्यकार दिन रात चिंतन करता रहता हैं?
माथुर: हां, साहित्यकार भी समाज का एक हिस्सा है जो दिन रात समाज के हित की और राष्ट्र के विकास व उत्थान की बातों को लेकर चिंतन मनन करता रहता हैं। वह अपनी तमाम जिम्मेदारियों के साथ ही साथ श्रेष्ठ साहित्य सृजन कर समाज को एक नई दशा और दिशा प्रदान करता है।
इसी के साथ ही साथ वह कला एवं संस्कृति के संरक्षण के लिए भी कार्य करता हैं। वह अपनी लेखनी के माध्यम से समाज की संस्कृति को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुंचाने के लिए निरन्तर प्रयासरत रहता हैं। माथुर का मानना है कि हर व्यक्ति में हुनर होता हैं। बस जरूरत है तो उसे प्रोत्साहन देने की। आज साहित्यकारों को ऐसे प्लेटफार्म की जरूरत है जिसके माध्यम से वे अपनी लेखनी की पहचान बना सकें।
Nice article