सद्गुरु एक दीपक के समान

सद्गुरु एक दीपक के समान… बडी विडम्बना की बात यह है कि हम अपने जीवन काल में न तो खुद दान पुण्य करते हैं और न ही किसी को करने देते है। लेकिन परिजनों के दिवंगत हो जाने पर उनकी स्मृति में खुब दान पुण्य करते हैं। #सुनील कुमार माथुर, जोधपुर, राजस्थान
कहते हैं कि गुरु बिना ज्ञान नहीं। इसलिए जीवन में एक सद् गुरु का होना नितांत आवश्यक है सद् गुरु एक दीपक के समान होता है। जैसे रात्रि में एक जलता हुआ दीपक अपनी रोशनी से राहगीरों को सही दिशा व मार्ग दिखाता है, ठीक उसी प्रकार एक सद् गुरु हमारा सही मार्गदर्शन कर सकता हैं और हमें अज्ञानता रूपी अन्धकार से ज्ञान रूपी प्रकाश में ले जाता हैं। वह हमें गलत राह में जाने से बचाता है।
हमारे जितने भी धर्म ग्रंथ है वे भी एक सच्चे गुरु के समान है। वे हमें ईश्वर की प्राप्ति कराने वाली वह औषधि है जो किसी डॉक्टर के पास भी नहीं है। जब तक हम परिवार व मोह माया के जाल में फंसे हुए हैं तब तक ईश्वर की प्राप्ति असंभव है। ईश्वर को पाने के लिए जीवन में एकाग्रता और समर्पण का भाव होना नितांत आवश्यक है।
बडी विडम्बना की बात यह है कि हम अपने जीवन काल में न तो खुद दान पुण्य करते हैं और न ही किसी को करने देते है। लेकिन परिजनों के दिवंगत हो जाने पर उनकी स्मृति में खुब दान पुण्य करते हैं। यह दान पुण्य फिर क्यों। अरे मेरे भाई, अपने जीवन काल में जितना हो सके उतना दान पुण्य आप स्वयं कीजिए और बच्चों से भी करावे।
मगर किसी व्यक्ति को दान पुण्य में नकद राशि न दे तो बेहतर होगा। चूंकि वह उस राशि से शराब पीता है या अन्य प्रकार का नशा करता है या जुंआ खेलता है तो उसका पाप आपको भी लगेगा। गाय कुत्तों को रोटी दे। कबूतर व चिड़िया को दाना पानी डालिए। कीडी नगरा सींचें। ये दान पुण्य सर्वश्रेष्ठ दान पुण्य हैं। भगवान का चिंतन व भजन ही मुक्ति का सर्वश्रेष्ठ मार्ग हैं।
यह संसार बहुत ही सुन्दर और आनंदमय है तभी तो लोग एक स्थान से दूसरे स्थान सैर सपाटे को जाता है अन्यथा कौन घूमने जाता। यह संसार आनन्द मय है, दुखदाई नहीं। दुखदाई तो हम ही हैं जो न तो खुद चैन से जीते हैन और न ही दूसरों को जीने देते हैं। नतीजन जीवन में टेंशन ही टेंशन हैं।सुख नहीं। किसी ने ठीक ही कहा है कि तितलियां खिलें हुए पुष्प पर ही मंडराती है मुरझाए पुष्प पर नहीं ।