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फीचरसाहित्य लहर

सच कहूं तो मेरी मम्मी ही मेरी प्रेरणा है : पूर्णिमा

साक्षात्कार : पूर्णिमा मंडल

सोशल मीडिया का कविता लेखन और साहित्य में बहुत बड़ा योगदान है। सोशल मीडिया पर हम जैसे लेखकों को एक पहचान मिली है। हम अपनी रचनाओं को सोशल मीडिया के जरिए लोगों तक पहुंचाते हैं।‌ कविताओं और साहित्य से लोग पिछड़ रहे थे सोशल मीडिया के जरिए लोगों का कविता और साहित्य की तरफ रूझान बढ़ा है।

इनका नाम पूर्णिमा मंडल है। यह जयपुर की‌ रहने वाली है। इनका जन्म स्थान दिल्ली है और दिल्ली से ही इन्होंने शिक्षा प्राप्त की है। इनकी अभिरुचि में लिखना, किताबें पढ़ना और संगीत सुनना आदि शामिल है। इन्होंने 96 साझा संकलन में अपना योगदान दिया है। इनकी कई रचनाएं समाचार पत्र में भी प्रकाशित हुई हैं। यहां प्रस्तुत है राजीव कुमार झा से इनकी संक्षिप्त बातचीत…

राजीव कुमार झा: आपका कविता से कैसे लगाव कायम हुआ।

पूर्णिमा मंडल : मेरी मम्मी लिखती थी तो उनको देखकर उनकी कविताएं पढ़कर कविताओं की तरफ यानी साहित्य की तरफ मेरा रुझान बढ़ा सच कहूं तो मेरी मम्मी ही मेरी प्रेरणा है।

प्रश्न:आजकल सोशल मीडिया के विकास से कविता लेखन लोकप्रिय हुआ है। इस बारे में आपका क्या कहना है?

पूर्णिमा मंडल: सोशल मीडिया का कविता लेखन और साहित्य में बहुत बड़ा योगदान है। सोशल मीडिया पर हम जैसे लेखकों को एक पहचान मिली है। हम अपनी रचनाओं को सोशल मीडिया के जरिए लोगों तक पहुंचाते हैं।‌ कविताओं और साहित्य से लोग पिछड़ रहे थे सोशल मीडिया के जरिए लोगों का कविता और साहित्य की तरफ रूझान बढ़ा है। कहा जाए तो सोशल मीडिया एक डोर है लेखक और पाठकों के बीच।

राजीव कुमार झा: आपको किन कवियों लेखकों ने काफी प्रभावित किया?

मुझे अमृता प्रीतम महादेवी वर्मा, मुंशी प्रेमचंद,सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की रचनाओं ने काफी प्रभावित किया है।



प्रश्न : जयपुर में कब से रह रही हैं? इस शहर में आपको क्या अच्छा लगता है?

पूर्णिमा मंडल : जयपुर में शादी के बाद 2016 से रह रही हूॅं लगभग 8 साल से जयपुर में हूं। चौपड़ और गोविंद देवजी मंदिर बहुत अच्छा लगता है। गोविन्द देव जी के मन्दिर मन को शांति और सुकून मिलता है।



राजीव कुमार झा: दिल्ली की अपनी यादों को साझा करें

पूर्णिमा मंडल : वैसे, दिल्ली मेरा मायका तो काफी सारी यादें हैं पर मेरे दोस्तों की बहुत याद आती है संग दिल्ली की मशहूर छोले भटूरे खाना हम तीन दोस्त थे और थोड़ी दूर पर ही हम तीनों का घर था और हम नौकरी भी एक जगह ही करते थे तो साथ में ओफिस जाते थे। और हम सब 8 किलोमीटर पैदल जाते थे और किराए के पैसे बचाकर उनसे छोले भटूरे खाना अक्सर याद आता है।




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