वो भी क्या दिन थे…
वो भी क्या दिन थे… आज चुनाव का कहीं भी माहौल नजर नहीं आ रहा हैं। मात्र समाचार पत्रों व टी वी पर विज्ञापन देकर राजनीतिक दल वोट मांग रहे हैं और विज्ञापन के बहाने करोडों रूपए व्यर्थ मे ही पानी की तरह बहा रहे है। #सुनील कुमार माथुर, जोधपुर, राजस्थान
वो भी क्या दिन थे। जब गली गली व मौहल्ले मौहल्ले मे चुनाव के दिनों में पार्टी के कार्यालय खुला करते थे। पार्टी की फरिया, बेनर, पोस्टर रह चौराहे पर लगा कर चौराहे को सजाया जाता था। गली गली में शोरगुल मचा करता था। पार्टी कार्यालयों में दिन भर चाय नाश्ते का दौर चला करता था। लोगों को अस्थाई रूप से रोजगार मिलता था।
लेकिन ये कैसे चुनाव आये। न कोई प्रचार प्रसार, न कोई शोरगुल, न पार्टी कार्यालय, न बिल्ले, बेनर, पोस्टर, न कहीं चाय नाश्ते, मात्र एक दूसरी पार्टी पर आरोप प्रत्यारोप लगाकर ही वोट मांगे जा रहे हैं । कौन हारेगा और कौन जितेगा यह तो वक्त ही बताएगा। लेकिन राजनीतिक दलों के नेताओं की जब जब जुबान फिसली तब तब मतदाताओं ने उन्हें सबक अवश्य ही सिखाया है।
आज चुनाव का कहीं भी माहौल नजर नहीं आ रहा हैं। मात्र समाचार पत्रों व टी वी पर विज्ञापन देकर राजनीतिक दल वोट मांग रहे हैं और विज्ञापन के बहाने करोडों रूपए व्यर्थ मे ही पानी की तरह बहा रहे है। बगैर मुद्दों के चुनाव देश को कहां ले जायेगा । यह कैसा लोकतंत्र जहां अन्याय होते हुए भी देखकर जनता जनार्दन मूक दर्शक व मौन बनी हुई है। वही दूसरी ओर लुटेरे देश की जनता को लुटेरी दुल्हन की तरह लूट रहे हैं।