मैट्रिक पास करने के बाद कालेज में पढ़ाई-लिखाई के लिए संघर्ष
1952 : अवध किशोर झा की डायरी...
मैट्रिक पास करने के बाद कालेज में पढ़ाई-लिखाई के लिए संघर्ष… मुंगेर से ट्रांसफर कराकर मचहा पहुंचा। मचहा वाले ने पहले तो कहा कि मैं आपको रख लूंगा लेकिन तदंतर मुकर गये। मैंने उन्हें तंग नहीं किया और चुपचाप वहां से लौटकर घर चला आया। घर आते समय रास्ते में मुझे बड़ी निराशा हुई और मैंने ऐसा अनुभव किया कि मुझे शायद भाग्य में पढ़ ना नहीं लिखा है। #राजीव कुमार झा
पांच अगस्त के लगभग मैं मुंगेर पहुंचा। रास्ते में नागेन्द्र से मुलाकात हुई। मैं तो पूर्ण आशा से चला था कि मुख्तार साहब अवश्य ही मुझे रख लेंगे किन्तु बात ऐसी नहीं हुई। चलते वक्त विलायती सिंह जी से भी मुंगेर चलने को कहा था पर वे नहीं जा सके। नागेन्द्र ने कहा कि मुख्तार साहब नहीं रख सकेंगे। आखिर मैं उनके साथ इधर उधर घूमता रहा। अंत में विलायती सिंह के साले के यहां गया पर वे नहीं मिले। निराश होकर लौट आया।
इसी समय मुरारी जी भी बड़हिया आए उनसे बातें हुईं और उन्होंने वर्मा जी से मेरे पढ़ने के बारे में कहा। उनसे मुलाकात होने पर पता चला कि वे रामदीरी में किसी के यहां हमारे लिए ट्यूशन ठीक करने वाले हैं। मैं भी बेगूसराय जाकर एक बार अपने भाग्य का फैसला करना चाहता था। इसके बाद बेगूसराय गया। सर्वप्रथम पशपुरा पहुंचा और एक भूमिहार के यहां ट्यूशन की बातचीत की। एक पंडित जी ने इस कार्य में विघ्न दे डाला।
इसके पहले उस भूमिहार ने मुझे रखने का वचन दे दिया था। फिर वहदरपुर जाकर एक रात वहां ठहरा। श्री सत्यनारायण जी ने किताबें दे दीं और मैं वहां से पशपुरा पहुंचा। वहां से व्यर्थ ही मचहा गया और अपने गांव के किसी परिचित आदमी के कुटुम्ब के यहां ठहरा रहा। उनको अपने पढ़ने के बारे में बताया तो उन्होंने वचन दिया कि मैं प्रयत्न करूंगा। अब मैं बिल्कुल निराश हो चुका था किंतु नवल सिंह ने रांची में मुझे ट्यूशन ठीक करने का आश्वासन दिया।
उनकी बात पर विश्वास कर मैं उनके लड़के को आजतक पढ़ाता आ रहा हूं पर वे जो रांची गये हैं सो गये ही हैं। अभी तक लौट सके। इधर मेरा नाम भी कालेज से कट गया है। हरि सिंह ने व्यर्थ ही अपने कुटुम्ब के कहने पर मुझे बहला दिया। उनके कहने पर मैंने बड़ी दिक्कत के साथ मुंगेर से ट्रांसफर कराकर मचहा पहुंचा।
मचहा वाले ने पहले तो कहा कि मैं आपको रख लूंगा लेकिन तदंतर मुकर गये। मैंने उन्हें तंग नहीं किया और चुपचाप वहां से लौटकर घर चला आया। घर आते समय रास्ते में मुझे बड़ी निराशा हुई और मैंने ऐसा अनुभव किया कि मुझे शायद भाग्य में पढ़ ना नहीं लिखा है।