साहित्य लहर

मुक्तक : दीप जलायें मिलकर

दीप जलायें मिलकर….. मंजिल दूर नहीं हौसले ही कमजोर होते हैं। साहस से चलें खुली राहें चहुं ओर होते हैं। कठिन राहों को देख कभी सीखा नहीं घबराना… #भुवन बिष्ट, रानीखेत (उत्तराखंड)

दीप जलायें मिलकर हम यहां फैलायें उजियारा।
फैले खुशियां जग में अब हो न कहीं भी अंधियारा।
अंतर्मन सब रागद्वेष मिटायें धरा सुंदर हम सजायें,
जब एक दीप हम बन जायें रोशन हो तब जग सारा।

पल भर की खुशियों से यहां क्यों मुस्कराना।
पग पग की कठिनाई को देख क्यों घबराना।
बदलते रहते क्षण कहते हैं इसी को जिंदगी।
चलें साहस से सदा मिले खुशियों का तराना।

मंजिल दूर नहीं हौसले ही कमजोर होते हैं।
साहस से चलें खुली राहें चहुं ओर होते हैं।
कठिन राहों को देख कभी सीखा नहीं घबराना
सच्चाई की राहों में सदा विपदा घनघोर होते हैं।

हर्षोल्लास श्रद्धा भाव के साथ बोया जाएगा हरेला


दीप जलायें मिलकर..... मंजिल दूर नहीं हौसले ही कमजोर होते हैं। साहस से चलें खुली राहें चहुं ओर होते हैं। कठिन राहों को देख कभी सीखा नहीं घबराना... #भुवन बिष्ट, रानीखेत (उत्तराखंड)

Devbhoomi Samachar

देवभूमि समाचार में इंटरनेट के माध्यम से पत्रकार और लेखकों की लेखनी को समाचार के रूप में जनता के सामने प्रकाशित एवं प्रसारित किया जा रहा है।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
Verified by MonsterInsights