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धर्म-संस्कृति

भगवान विष्णु को समर्पित है वैशाख

वैशाख मास में प्याऊ लगाकर थके-मांदे मनुष्यों को संतुष्ट करने से ब्रह्मा, विष्णु और शिव आदि देवताओं को संतुष्ट कर लिया। जल की इच्छा रखने वाले को जल, छाया चाहने वाले को छाता और पंखे की इच्छा रखने वाले को पंखा देना, विष्णुप्रिय वैशाख में जो पादुका दान करता है #सत्येंद्र कुमार पाठक

सनातन धर्म के विभिन्न ग्रंथो एवं ज्योतिष शास्त्रों के अनुसार वैदिक पंचांग में वर्ष का द्वितीय माह वैशाख को विशाखा नक्षत्रयुक्त पूर्णिमा होने के कारण कहा जाता है। है)। भगवान विष्णु को समर्पित और प्रिय माह वैशाख पुण्यकारी, है | वैशाख को माधव मास के देवता “मधुसूदन” हैं |भगवान विष्णु द्वारा दैत्यराज मधु का वध होने के कारण मधुसूदन कहते हैं। विष्णुसहस्त्रनाम के अनुसार “दुःस्वप्ने स्मर गोविन्दं संकटे मधुसूदनम्” किसी भी प्रकार के संकट में श्रीविष्णु के नाम मधुसूदन का स्मरण करना चाहिए। स्कन्दपुराणम्, वैष्णवखण्ड के अनुसार न माधवसमो मासो न कृतेन युगं समम्। न च वेदसमं शास्त्रं न तीर्थं गंगया समम्।।

अर्थात वैशाख के समान कोई मास नहीं है, सत्ययुग के समान कोई युग नहीं है, वेद के समान कोई शास्त्र नहीं है और गंगाजी के समान कोई तीर्थ नहीं है।* पद्मपुराण, पातालखण्ड के अनुसार यथोमा सर्वनारीणां तपतां भास्करो यथा।आरोग्यलाभो लाभानां द्विपदां ब्राह्मणो यथा।। परोपकारः पुण्यानां विद्यानां निगमो यथा।मंत्राणां प्रणवो यद्वद्ध्यानानामात्मचिंतनम्।।सत्यं स्वधर्मवर्तित्वं तपसां च यथा वरम्।शौचानामर्थशौचं च दानानामभयं यथा।।गुणानां च यथा लोभक्षयो मुख्यो गुणः स्मृतः।मासानां प्रवरो मासस्तथासौ माधवो मतः।।

अतएव जैसे सम्पूर्ण स्त्रियों में पार्वती, तपने वालों में सूर्य, लाभों में आरोग्यलाभ, मनुष्यों में ब्राह्मण, पुण्यों में परोपकार, विद्याओं में वेद, मन्त्रों में प्रणव, ध्यानों में आत्मचिंतन, तपस्याओं में सत्य और स्वधर्म-पालन, शुद्धियों में आत्मशुद्धि, दानों में अभयदान तथा गुणों में लोभ का त्याग ही सबसे प्रधान माना गया है, उसी प्रकार सब मासों में वैशाख मास अत्यंत श्रेष्ठ है | महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 106 के अनुसार निस्तरेदेकभक्तेन वैशाखं यो जितेन्द्रियः। नरो वा यदि वा नरी ज्ञातीनां श्रेष्ठतां व्रजेत्।।” जो स्त्री अथवा पुरूष इन्द्रिय संयम पूर्वक एक समय भोजन करके वैशाख मास को पार करता है, वह सहजातीय बन्धु-बान्धवों में श्रेष्ठता को प्राप्त होता है।।

पद्मपुराण, पातालखण्ड के अनुसार दत्तं जप्तं हुतं स्नातं यद्भक्त्या मासि माधवे।तदक्षयं भवेद्भूप पुण्यं कोटिशताधिकम्।। माधवमास में जो भक्तिपूर्वक दान,जप, हवन और स्नान आदि शुभकर्म किये जाते हैं, उनका पुण्य अक्षय तथा सौ करोड़ गुना अधिक होता है। प्रातःस्नानं च वैशाखे यज्ञदानमुपोषणम्।हविष्यं ब्रह्मचर्यं च महापातकनाशनम्।। वैशाख मास में सवेरे का स्नान, यज्ञ, दान, उपवास, हविष्य-भक्षण तथा ब्रह्मचर्य का पालन – ये महान पातकों का नाश करने वाले हैं। स्कन्दपुराण के अनुसार तैलाभ्यङ्गं दिवास्वापं तथा वै कांस्य भोजनम्।। खट्वा निद्रां गृहे स्नानं निषिद्धस्य च भक्षणम्।।

वैशाख में तेल लगाना, दिन में सोना, कांस्यपात्र में भोजन करना, खाट पर सोना, घर में नहाना, निषिद्ध पदार्थ खाना दोबारा भोजन करना तथा रात में खाना – इन आठ बातों का त्याग करना चाहिए। शिवपुराण के अनुसार वैशाख में भूमि का दान करना चाहिए | ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार वैशाख मास में ब्राह्मण को सत्तू दान करने वाला पुरुष सत्तू कण के बराबर वर्षों तक विष्णु मन्दिर में प्रतिष्ठित होता है। वैशाख मास में गृह प्रवेश करने से धन, वैभव, संतान एवं आरोग्य की प्राप्ति होती हैं। देव प्रतिष्ठा के लिये वैशाख मास शुभ है।



वृक्षारोपण के लिए वैशाख मास विशेष शुभ है। स्कन्द पुराण में वैशाख मास के भगवान विष्णु को अत्यन्त प्रिय और माता की भाँति सब जीवों को सदा अभीष्ट वस्तु प्रदान करने वाला है। वैशाख मास में सूर्योदय से पूर्व स्नान करने एवं भगवान विष्णु निरन्तर प्रीति करने पर सभी दानों से जो पुण्य होता है और सब तीर्थों में फल मिलते हैं। वैशाख मास में जलदान करके प्राप्त कर लेता है। वैशाख मास में सड़क पर यात्रियों के लिए प्याऊ लगाने पर विष्णुलोक में प्रतिष्ठित होता है। जल दान व प्याऊ देवताओं, पितरों तथा ऋषियों को अत्यन्त प्रीति देने वाला है।



वैशाख मास में प्याऊ लगाकर थके-मांदे मनुष्यों को संतुष्ट करने से ब्रह्मा, विष्णु और शिव आदि देवताओं को संतुष्ट कर लिया। जल की इच्छा रखने वाले को जल, छाया चाहने वाले को छाता और पंखे की इच्छा रखने वाले को पंखा देना, विष्णुप्रिय वैशाख में जो पादुका दान करता है, वह यमदूतों का तिरस्कार करके विष्णुलोक को प्राप्त कर लेता है। मार्ग में अनाथों के ठहरने के लिए विश्रामशाला बनवाता से पुण्य फल, अन्नदान मनुष्यों को तत्काल तृप्…


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