बाल साहित्य को गरिमामय स्थान मिले

बाल साहित्य को गरिमामय स्थान मिले… हाल ही में राजसमन्द ( राजस्थान ) में बच्चों का देश मासिक पत्रिका के रजत जयंती समारोह के अवसर पर बाल साहित्य समागम का आयोजन 16 से 18 अगस्त 2024 को आयोजित किया गया जिसमें देश भर से आमंत्रित 90 साहित्यकारों ने बच्चों को फिर से पुस्तकों से जोड़ने का आव्हान किया। #सुनील कुमार माथुर, जोधपुर, राजस्थान
बाल साहित्य को गरिमामय स्थान मिले इसके लिए साहित्यकार निरन्तर प्रयासरत हैं। कोरोना काल में बच्चों को आनलाइन शिक्षा से जोडा गया था लेकिन उसके घातक परिणाम सामने आए। बच्चे अब मोबाइल फोन छोडते नहीं है और दिन भर मोबाइल से घिरे हुए रहते हैं। पढाई के साथ ही साथ वे अनाप-शनाप सामग्री मोबाइल पर देख रहे हैं और वे आक्रामक हो रहे है। इतना ही नहीं कम आयु में ही बच्चों की आंखों पर चश्मा लग गया है। सच्चा साहित्यकार वहीं है जो समाज को सच्चाई से अवगत कराये।
हाल ही में राजसमन्द ( राजस्थान ) में बच्चों का देश मासिक पत्रिका के रजत जयंती समारोह के अवसर पर बाल साहित्य समागम का आयोजन 16 से 18 अगस्त 2024 को आयोजित किया गया जिसमें देश भर से आमंत्रित 90 साहित्यकारों ने बच्चों को फिर से पुस्तकों से जोड़ने का आव्हान किया। तमाम साहित्यकारों ने अपने-अपने उद् बोधन में कहा कि बाल साहित्य को गरिमामय स्थान मिलें इसके लिए साहित्यकार निरन्तर प्रयासरत हैं और अभिभावकों को भी चाहिए कि वे बच्चों को मोबाइल से दूर रखने के लिए उन्हें बच्चों का देश, देवपुत्र, बाल भारती, बाल प्रहरी जैसी बाल साहित्य पत्रिका पढने को दे ताकि बच्चों में आदर्श संस्कार विकसित हो और बच्चों में देशभक्ति की भावना जागृत हो।
साहित्यकारों ने इस बात पर गहरी चिंता व्यक्त की कि आज रविवारीय परिशिष्ट से बालकों का सम्पूर्ण व्यक्तित्व का निर्माण करने वाली सामग्री (बाल साहित्य जैसे कहानी, कविताएं, गीत, पहेलियां, अनमोल वचन, आधूरा चित्र को पूरा बनाओं और रंग भरे) नदारद हो गई है जिसे पुनः आरंभ कर बच्चों का व्यक्तित्व निर्माण करने में पत्रकारों को भी आगे आना होगा। बाल साहित्य समागम से यह उम्मीद जगी की साहित्यकारों के इस महाकुंभ से आशाजनक परिणाम निकलेंगे।
इस अवसर पर बच्चों का देश मासिक पत्रिका परिवार की ओर से सभी आमंत्रित साहित्यकारों का सम्मान किया गया जो न केवल साहित्यकारो का ही सम्मान है अपितु मां सरस्वती का सम्मान व कलम एवं एक एक शब्दों की माला का सम्मान हैं। स्थानीय व केन्द्र सरकार को चाहिए कि वे ऐसे आयोजनकर्ताओं को आर्थिक सहयोग प्रदान करे ताकि वे अपने रचनात्मक मिशन को निरन्तर बिना किसी बाधा के आगे बढा सके।