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बापू के नाम खुला पत्र : समायोजित शिक्षकों को पेंशन दी जाये

हे बापू ! यह कैसी विडम्बना है कि बाड ही खेत को खा रही हैं। हे बापू, एक बार अहिंसा की ऐसी लाठी बजा दो कि पीड़ित व्यक्ति को तुरंत न्याय मिले, भ्रष्टाचार, हेराफेरी, गुंडागर्दी, तानाशाही, अराजकता, हिंसा, लूटपाट का पूरी तरह से खात्मा हो जाये और देश एक बार फिर से सोने की चिड़िया बन जाये।  #सुनील कुमार माथुर, जोधपुर (राजस्थान)

राधे, राधे। बापू तेरे इस देश को क्या हो गया। हर कोई मनमानी कर रहा है़। शासन शासन न होकर मजाक बन कर रह गया हैं। आज समायोजित शिक्षक भी इस देश में पेंशन को तरस रहा हैं। हे बापू ! जिस शिक्षक ने अनुदानित शिक्षण संस्थान में अपनी जिंदगी खपा दी उस शिक्षक को समायोजित करने के बहाने एक शपथ पत्र भरा लिया कि हम पुरानी सुविधाएं नहीं लेगे, पदौन्नति नहीं लेगे, जिस पद पर है उसी पद पर रह कर ग्रामीण क्षेत्रों में सेवाएं देगे। इतना ही नही पेंशन के हकदार भी तभी होगे जब समायोजित होने के बाद दस साल की सेवा पूरी कर ली हो।

हे बापू ! अब आप ही बताओं कि हमारे जनप्रतिनिधि सरकारी कर्मचारी और अधिकारी नहीं होते है फिर भी तमाम तरह की सुविधाएं और पेंशन के नाम पर मोटी रकम हडप रहे है और मेहनत शिक्षकों पर शर्ते लादी जा रही है। देश का भविष्य बनाने वाले समायोजित शिक्षकों को पेंशन से वंचित कर भूखे मारना कहां का न्याय है।

पेंशन पाना सरकारी अधिकारी और कर्मचारी का हक है जिसे उसे वंचित नहीं किया जा सकता है राजस्थान में पिछली गहलोत सरकार के शासनकाल में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने स्वंय कहा था कि पेंशन कर्मचारी का हक हैं। लेकिन उन्होंने पेंशन आरम्भ नहीं की। नतीजन 2024 के चुनाव में कांग्रेस की गहलोत सरकार को पराजय का सामना करना पड़ा। लेकिन भाजपा सरकार ने भी समायोजित शिक्षकों को पेंशन के बारे में अभी तक कोई निर्णय नहीं लिया। पेंशन के अभाव में समायोजित कर्मचारियों के परिजनों के लिए जीवन व्यापन करना मुश्किल हो गया है।

हे बापू ! यह कैसी विडम्बना है कि बाड ही खेत को खा रही हैं। हे बापू, एक बार अहिंसा की ऐसी लाठी बजा दो कि पीड़ित व्यक्ति को तुरंत न्याय मिले, भ्रष्टाचार, हेराफेरी, गुंडागर्दी, तानाशाही, अराजकता, हिंसा, लूटपाट का पूरी तरह से खात्मा हो जाये और देश एक बार फिर से सोने की चिड़िया बन जाये। देश का हर नागरिक सुखी, समृध्द और खुशहाल जीवन व्यतीत करें। हे बापू ! गरीबों और पीडितो को समय रहते न्याय दिला दीजिए।

न्याय की गुहार

कनिष्ठ लिपिक प्रतियोगी परीक्षा ( 1986 ) बैच के उन अभ्यर्थियों को सितम्बर 1993 से अप्रैल म ई 2000 तक का लाभ दिला दीजिए जिनके हक में देश की सर्वोच्च अदालत सुप्रीम कोर्ट ने सितम्बर 1993 में फैसला कर दिया था और राजस्थान सरकार ने कोर्ट के फैसले के करीबन सात साल बाद में नियुक्ति दी लेकिन इन सात वर्षों का अभी तक कोई लाभ नहीं दिया। अतः जो सेवानिवृत्त हो गए उनकी पेंशन कम होने से वे आर्थिक परिस्थितियों को झेल रहे है। अतः सरकार इस बैच के ( 1986 के बैच के ) सभी सेवानिवृत्त और कार्यरत कर्मचारियों को इस अवधि का लाभ दे कर्मचारी बार बार अदालत का द्वार खटखटाने में असमर्थ हैं। अतः सरकार मानवीय आधार पर इन कर्मचारियों को उनका हक देकर न्याय प्रदान करें। चूंकि न्याय में विलम्ब न्याय का हनन हैं।


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