बसंत पंचमी से शुरु होती है कुमाऊं में बैठकी होली
विवाह, चूड़ाक्रम आदि संस्कारों के लिए भी यह दिन बहुत ही शुभ माना जाता है। इसी दिन धन की देवी मां लक्ष्मी का जन्म भी माना जाता है। लोग पीत वस्त्र धारण भी करते हैं। पीला रंग सकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है। विद्यालयों में सरस्वती पूजन-वंदना व लेखन प्रतियोगिताएं जैसे कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। #ओम प्रकाश उनियाल
ऋतुओं का राजा बंसत का आगमन हो चुका है। प्रकृति का हर तरफ नया रूप देखने को मिलने लगा है। पतझड़ के बाद पेड़ों पर नए-नए पते निकल रहे हैं, खेतों में बोयी गेंहू-जौ की फसल पर बालियां झलकने लगी हैं, पीली-पीली सरसों खेतों में लहराते हुए धरती का स्वागत कर रही है। जंगलों में फूलों की कलियां इठलाती हुई खिल रही हैं। हर तरफ प्रकृति श्रृंगार कर धरती की शोभा बढ़ा रही है।
धरती के प्राणियों में चेतना की नयी लहर दौड़ने लगी है। माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को बसंत पंचमी मनायी जाती है। यह त्योहार प्रकृति, कृषि और ऋतु-परिवर्तन का संकेत है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन संगीत, कला एवं विद्या की देवी मां सरस्वती का अवतरण हुआ था। इसलिए ज्ञान की देवी सरस्वती की पूजा की जाती है। व्रत रखने व दान करने की भी परंपरा है।
विवाह, चूड़ाक्रम आदि संस्कारों के लिए भी यह दिन बहुत ही शुभ माना जाता है। इसी दिन धन की देवी मां लक्ष्मी का जन्म भी माना जाता है। लोग पीत वस्त्र धारण भी करते हैं। पीला रंग सकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है। विद्यालयों में सरस्वती पूजन-वंदना व लेखन प्रतियोगिताएं जैसे कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। जगह-जगह बसंत मेले भी आयोजित किए जाते हैं।
उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में यह पर्व खासा महत्वपूर्ण माना जाता है। खासतौर कुमाऊं में इस दिन से बैठकी होली की शुरुआत होती है। जिसका अलग ही आनंद है। बसंत के आते ही सर्दी की ठिठुरन लगभग समाप्ति की ओर होती है। इस खुशनुमा ऋतु के साथ-साथ उल्लास व जश्न का माहौल बनाएं।