बड़प्पन
बड़प्पन… बड़प्पन तो वह गुण है जो पद से नहीं बल्कि संस्कारों से ही प्राप्त होता है।अत: बच्चों को बचपन से ही आदर्श संस्कार दीजिए। जहां संस्कार है वहीं हमारी सभ्यता और संस्कृति का मान सम्मान और गौरव हैं। #सुनील कुमार माथुर, जोधपुर, राजस्थान
जीवन में संस्कारों का बडा ही महत्व है। आदर्श संस्कार ही हमें अपनी मंजिल तक ले जाने का सर्वश्रेष्ठ जरिया है। संस्कार है तो जीवन खुशहाल है। जीवन में आदर्श संस्कार है तो सभी अपने है और पराये भी अपने बन जाते हैं। आदर्श संस्कारों की नींव घर परिवार से ही आरंभ होती है, चूंकि आदर्श संस्कार कोई बाजार में मिलने वाली चीज नहीं है कि जब चाहा तब जरूरत के मुताबिक खरीद लिया।
लेकिन आज छोटा परिवार सुखी परिवार के नाम पर संयुक्त परिवार धीरे-धीरे समाप्त होते जा रहे है जिसके कारण हम दो हमारे दो के नाम पर बच्चों को आदर्श संस्कार देने वाला कोई नहीं रहा। बच्चों के माता-पिता दोनों सर्विस करते है। वे काम धंधे पर चले जाते हैं। बच्चे नाना-नानी व दादा दादी से दूर हो गये और दिन भर मोबाइल पर व्यस्त रहते हैं उन्हें कोई भी रोकने-टोकने वाला नहीं है।
वे मोबाइल पर क्या देख रहे हैं और क्या सीख रहे हैं। किसी को कोई परवाह नहीं है। शिक्षकों को व शिक्षण संस्थाओं के प्रधानों को तो बस फीस से मतलब है। वे भी बच्चों में संस्कार क्यों दे। जहां स्वार्थ है वहीं लाभ की सभी सोचते हैं।
बड़प्पन तो वह गुण है जो पद से नहीं बल्कि संस्कारों से ही प्राप्त होता है।अत: बच्चों को बचपन से ही आदर्श संस्कार दीजिए। जहां संस्कार है वहीं हमारी सभ्यता और संस्कृति का मान सम्मान और गौरव हैं। हमारा बड़प्पन ही हमारी असली पहचान है। बड़प्पन ही हमारी पूंजी है जिसे संजोए रखना हमारा दायित्व है।
True