
हर्षिल नाम की उत्पति हरि-शीला से हुई है। कहा जाता है कि सतयुग में देवी भागीरथी और जालंधरी के बीच बहस हो गई। दोनों की बहस होती देख भगवान विष्णु ने बीच-बचाव का मन बनाया और पत्थर की शीला का रूप धारण किया। इस शिला ने दोनों ही देवियों के क्रोध को अपने अंदर समाहित किया।
[/box]उत्तरकाशी। अपने रसीले सेबों के साथ प्राकृतिक सुंदरता के लिए प्रसिद्ध पर्यटन स्थल हर्षिल पर्यटकों से गुलजार है। यहां करीब 300 पर्यटक थर्टी फस्ट और नए साल का जश्न मनाने के लिए पहुंचे हुए हैं। पर्यटकों के स्वागत के लिए हर्षिल को खासतौर पर लड़ियों व बैलून लाइट से सजाया गया है।
जिला मुख्यालय से करीब 85 किमी दूरी पर स्थित हर्षिल की प्राकृतिक सुंदरता पर्यटकों को बरबस ही अपनी ओर आकर्षित करती है। यूं तो यहां वर्षभर पर्यटकों का आना-जाना लगा रहता है। लेकिन शीतकाल में थर्टी फस्ट और नए साल का जश्न मनाने के लिए विशेष रूप से यहां पर्यटक पहुंचते हैं। इन दिनों यहां करीब दिल्ली, हरियाणा, उत्तरप्रदेश आदि राज्यों से करीब 300 पर्यटक पहुंचे हुए हैं। पर्यटकों की अच्छी संख्या के चलते पर्यटन कारोबारियों के चेहरे पर भी रौनक हैं।
हर्षिल के साथ बगोरी, धराली और झाला आदि में भी होटल व होमस्टे मालिकों को पर्यटकों की अच्छी बुकिंग मिली है। पर्यटकों के स्वागत में यहां हर्षिल मुख्य बाजार से लेकर ककोड़ागाड पुल तक लड़ियों व बैलून लाइट से सजावट की गई है। रात्रि के समय यह सजावट पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बनी हुई है। पर्यटन कारोबारी माधवेंद्र रावत और एसएस टोलिया का कहना है कि पर्यटकों के आने से हर्षिल में रौनक बढ़ी है। उन्होंने बताया कि पर्यटकों को किसी तरह की दिक्कत न हो, इसके लिए उनकी सुविधाओं का ध्यान रखा जा रहा है।
हर्षिल में बॉलीवुड राम तेरी गंगा मैली की शूटिंग हुई थी। इस फिल्म में दिखाए गए पोस्ट ऑफिस के साथ ही पर्यटक हर्षिल से लगे गंगा ग्राम बगोरी का भ्रमण कर सकते हैं। यहां बौद्ध मंदिर व प्राचीन स्थापत्य कला में निर्मित लकड़ी के आकर्षक भवन बनाए गए हैं। हर्षिल से कुछ दूर मां गंगा का शीतकालीन प्रवास मुखबा गांव, धराली व छोलमी भी चंद कदमों की दूरी पर है। हर्षिल में स्थित लक्ष्मी नारायण मंदिर के दर्शन किए जा सकते हैं। इसके अलावा गंगा मंदिर, कल्प केदार व पंचमुखी महादेव मंदिर भी दर्शनीय हैं।
हर्षिल नाम की उत्पति हरि-शीला से हुई है। कहा जाता है कि सतयुग में देवी भागीरथी और जालंधरी के बीच बहस हो गई। दोनों की बहस होती देख भगवान विष्णु ने बीच-बचाव का मन बनाया और पत्थर की शीला का रूप धारण किया। इस शिला ने दोनों ही देवियों के क्रोध को अपने अंदर समाहित किया। जिसके बाद दोनों का क्रोध शांत हो गया। इसके बाद दोनों ही नदियां शांत रूप में बहने लगी। इस कारण पहले इस जगह का नाम हरि-शीला और फिर हर्षिल पड़ा।
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