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दिल्ली में साहित्योत्सव और गुलजार का व्याख्यान

उनके अपने लेखक हैं। फिल्मों का साहित्य की जीवन चेतना से कोई सरोकार नहीं रह गया है और गुलजार जैसे सिनेकारों ने इन मुद्दों को लेकर चुप्पी साधे रखी है। इसलिए किसी दूसरे साहित्यकार से व्याख्यान दिलवाना ठीक होगा। #राजीव कुमार झा

साहित्य अकादेमी के सचिव ने बताया है कि साहित्योत्सव में गुलजार को वहां व्याख्यान के लिए आमंत्रित किया गया है। इस तरह के लोगों को साहित्य के इस विशिष्ट आयोजन में क्यों इस तरह कि सम्मान प्रदान किया जा रहा है। गुलजार सिनेमा का गीत वगैरह लिखते रहे हैं। गुलजार के गीत लेखन से आजिज आकर उनकी पत्नी भी घर छोड़कर चली गयी और वह दिल ढूंढने में लगे रहे।

साहित्य की परंपरा और समकालीन भारतीय साहित्य की अस्मिता के विवेचन से उनका क्या सरोकार रहा है और ऐसे लोग पीने पाने वाले लोग माने जाते हैं। दिल्ली के हैबिटेट सेंटर में भी वह साहित्य संवाद में आए थे और मैं भी उनके बेहद नीरस कार्यक्रम में शरीक हुआ था। गुलजार से अच्छा रस्किन बांड वहां बोलते रहे और उनसे बातचीत करना मुझे भी अच्छा लगा।

मेरी टूटी फूटी अंग्रेजी में पूछे प्रश्नों का धैर्य से वह जवाब देते रहे। ऐसे ही हंस -हंसकर आलतू फालतू बात बोलकर दर्शकों से ठहाका लगवाने गुलजार की जगह किसी दूसरे लेखक को साहित्य अकादेमी साहित्योत्सव में आमंत्रित करे तो बेहतर होगा। सिनेमा साहित्य नहीं है और साहित्य के लोगों को फ़िल्म वाले जिस तरह से उपेक्षित अपमानित करते रहे हैं, यह अत्यंत पीड़ाप्रद है।

उनके अपने लेखक हैं। फिल्मों का साहित्य की जीवन चेतना से कोई सरोकार नहीं रह गया है और गुलजार जैसे सिनेकारों ने इन मुद्दों को लेकर चुप्पी साधे रखी है। इसलिए किसी दूसरे साहित्यकार से व्याख्यान दिलवाना ठीक होगा।


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