धर्म-संस्कृति

चातुर्मास और भगवान विष्णु की योगनिद्रा

चातुर्मास और भगवान विष्णु की योगनिद्रा… भगवान विष्णु के हाथो में सुदर्शन चक्र, शंख, गदा और कमल का फूल लिए हुए हैं। बूढानी नीलकंठ मंदिर भगवान विष्णु के साथ-साथ भगवान शिव को समर्पित है। “बुढ़ानीलकंठ” अर्थात् जिसका अप्रत्यक्ष रुप से विराजमान है। #सत्येन्द्र कुमार पाठक

शास्त्रों एवं स्मृतियों में सम्पूर्ण सृष्टि का रचयिता व पालनहार भगवान विष्णु क्षीर सागर में शेषनाग पर निवास करते हुए सृष्टि करते है। नेपाल के शिवपुरी का विशाल झील में भगवान विष्णु निवास कर रहे है। नेपाल के बुढ़ानीलकंठ मंदिर प्रसिद्ध और पवित्र परिसर है। नेपाल के काठमांडू से १०किमी. दूर शिवपुरी की पहाड़ी पर स्थित भव्य मंदिर में भगवान विष्णु की (शयन) सोती हुई प्रतिमा विराजित हैं। शालिग्राम पत्थर से तराशी गई मूर्ति की ऊंचाई 5 मीटर और लंबाई 13 मीटर युक्त शालिग्राम पत्थर में निर्मित भगवान विष्णु झील के मध्य यह स्थित है। मूर्ति में भगवान विष्णु शेषनाग की शैया पर लेटे हुए है।

भगवान विष्णु के हाथो में सुदर्शन चक्र, शंख, गदा और कमल का फूल लिए हुए हैं। बूढानी नीलकंठ मंदिर भगवान विष्णु के साथ-साथ भगवान शिव को समर्पित है। “बुढ़ानीलकंठ” अर्थात् जिसका अप्रत्यक्ष रुप से विराजमान है। भगवान विष्णु की प्रतिमा के ठीक नीचे भगवान शिव की छवि देखने को मिलती हैं। स्मृतियों और पुराणों के अनुसार अमृत पाने की लालसा में देवताओं और असुरो ने समुद्र मंथन करने से विष निकलने से सम्पूर्ण सृष्टि का विनाश के कगार पर आ गया था। सृष्टि को विष की विनाश से बचाने के लिए भगवान शिव ने विष को अपने कंठ में लेने के कारण भगवान शिव का कंठ नीला पड़ गया।

जब विष के दुष्प्रभावों के कारण भगवान शिव का कंठ जलने के कारण नेपाल के काठमांडू से 10 मिल की दूरी पर भगवान शिव ने त्रिशूल के प्रहार से झील का निर्माण कर जल से भगवान शिव ने अपने कंठ की पीड़ा को शांत किया था। झील को “गोसाई कुंड”, नीलकंठ झील, शिवगंज, शिवपुरी से ख्याति हैं। शिवगंज में स्थित भगवान विष्णु की योगनिंद्रा के रूप में कार्तिक शुक्ल एकादशी को भगवान विष्णु के इस अद्भुत प्रतिमा के दर्शन करते है। नेपाल के काठमांडू से 10 किमि पर अवस्थित शिवपुरी में स्थित भगवान विष्णु जी का मंदिर नक्काशियों के लिए प्रसिद्ध है। शिवगंज झील में स्थापित मंदिर बुढ़ानिलकंठ में भगवान विष्णु की सोती हुई प्रतिमा विराजित है।

बुढ़ानिलकुंठ मंदिर में भगवान विष्णु की शयन प्रतिमा विराजमान है, मंदिर में विराजमान इस मूर्ति की लंबाई लगभग 5 मीटर है और तालाब की लंबाई करीब 13 मीटर ब्रह्मांडीय समुद्र का प्रतिनिधित्व करता है। भगवान विष्णु की तालाब में स्थित विष्णु जी की मूर्ति शेष नाग की कुंडली में विराजित है। मूर्ति में विष्णु के पैर पार हो गए हैं और बाकी के ग्यारह सिर उनके सिर से टकराते हुए दिखाए गए हैं। भगवान विष्णु प्रतिमा में विष्णु जी चार हाथ उनके दिव्य गुणों को बता रहे हैं, पहला चक्र मन का प्रतिनिधित्व करना, एक शंख चार तत्व, एक कमल का फूल चलती ब्रह्मांड और गदा प्रधान ज्ञान को दिखा रही है। मंदिर में भगवान विष्णु प्रत्यक्ष मूर्ति के रूप में विराजमान एवं भगवान शिव पानी में अप्रत्यक्ष रूप से विराजित हैं।



बुदनीलकंठ के पानी को गोसाईकुंड में उत्पन्न है। शिव उत्सव एवं जेउष्ठान के दौरान झील के पानी के नीचे शिव की एक छवि देखी जा सकती है। सनातन धर्म ग्रंथों में भगवान विष्णु का योगनिद्रा में स्थित मूर्ति को आषाढ़ शुक्ल एकादशी और कार्तिक शुक्ल पक्ष एकादशी, जेउष्ठान, जेठान में दर्शन एवं उपासना करने से अभीष्ट फल की प्राप्ति होती है। शिवगंज का गोसेकुण्ड में भगवान विष्णु का शयन के समक्ष शान्ताकारं भुजंगशयनं पद्मनाभं सुरेशं, विश्वाधारं गगन सदृशं मेघवर्ण शुभांगम्। लक्ष्मीकांत कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यं, वन्दे विष्णु भवभयहरं सर्व लौकेक नाथम् ॥ यं ब्रह्मा वरुणैन्द्रु रुद्रमरुत: स्तुन्वानि दिव्यै स्तवैवेदे:। सांग पदक्रमोपनिषदै गार्यन्ति यं सामगा:।ध्यानावस्थित तद्गतेन मनसा पश्यति यं योगिनो यस्यातं न विदु: सुरासुरगणा दैवाय तस्मै नम: ॥



अर्थात जिनकी आकृति स्वरूप अतिशय शांत है,जो ‍जगत के आधार व देवताओं के भी ईश्वर (राजा) है, जो शेषनाग की शैया पर विश्राम किए हुए हैं, जिनकी नाभि में कमल है और जिनका वर्ण श्याम रंग का है, जिनके अतिशय सुंदर रूप का योगीजन ध्यान करते हैं, जो गगन के समान सभी जगहों पर छाए हुए हैं, जो जन्म-मरण के भय का नाश करने वाले हैं, जो सम्पूर्ण लोकों के स्वामी हैं, जिनकी भक्तजन बन्दना करते हैं, ऐसे लक्ष्मीपति कमलनेत्र भगवान श्रीविष्णु को अनेक प्रकार से विनती कर प्रणाम करता हूँ। ब्रह्मा, शिव, वरुण, इन्द्र, मरुद्गण जिनकी दिव्य स्तोत्रों से स्तुति गाकर रिझाते है, सामवेद के गाने वाले अंग, पद, क्रम और उपनिषदों के सहित वेदों द्वारा जिनका गान करते हैं, योगीजन ध्यान में स्थित प्रसन्न हुए मन से जिनका दर्शन करते हैं, देवता और असुर जिनके अंत को नही पाते, उन नारायण को सौरभ नमस्कार करता हैं।



महाभारत शांत पर्व 320 / 26, रघुनंदन कृत्यतत्व पृष्ठ 434 -36, स्मृति तत्व जीवानंद संस्क द्वितीय भाग के अनुसार विशिष्ट व्रत तथा यज्ञ के चातुर्मास्य को “लौकिक चातुर्मास्य” और यज्ञसंबंधी चातुर्मास्य को “वैदिक चातुर्मास्य” कहते हैं। लौकिक चातुर्मास्य का पालन वर्षा के चार महीनों मे आषाढ़ शुक्ल द्वादशी से कार्तिक शुक्ल द्वादशी तक चातुर्मास का आषाढ़ संक्रांति से कार्तिक संक्रांति तक है। चातुर्मास में मांस, गुड़, तैल आदि का व्यवहार वर्जित और जप, मौनादि का विधान है। चातुर्मास को विष्णुव्रत कहा गया हैं। वैदिक चातुर्मास्य द्विविध स्वतंत्र और राजसूयांतर्गत। स्वतंत्र चातुर्मास्य अग्निहोत्रादि की भाँति नित्यकर्म है। प्रति वर्ष राजसूय यज्ञ के अंतर्गत अनुष्ठेय है। चातुर्मास्य में पर्वों में वैश्वदेव, वरुण प्रवास, शाकमेध एवं शुनासीरीय पर्व है।



चारों पर्व में अनुष्ठेय कार्यों का विवरण चिन्नस्वामिकृत “यज्ञतत्वप्रकाश” (पृ. 45-53) और काणेकृत हिस्ट्री ऑव दि धर्मशास्त्र (भाग 2, पृ. 1091-1108) में है। स्वतंत्र चातुर्मास्य के दो पक्ष हैं- उत्सर्ग पक्ष और अनुत्सर्ग पक्ष है। वैदिकों की परंपरा में सोमयज्ञ के अंतर्गत उत्सर्ग पक्ष ही स्वीकृत और चातुर्मास्य का त्रिविध वर्गीकरण में ऐष्टिक, पाशुक और सौमिक तथा पशुद्रव्य से किए जाने पर पाशुक और सोमद्रव्य से निष्पन्न होने पर सौमिक चातुर्मास्य है। चातुर्मास का सावन माह भगवान शिव को समर्पित, ऋषियों की ऋषिपंचमी, नागपंचमी, सावन पूर्णिमा, भाद्रपद गणपति, यम, भगवान कृष्ण को समर्पित कृष्णाष्टमी, माता पार्वती, इंद्र , कर्म एकादशी, अनंत चतुर्दशी, अश्विन मास पितृ पक्ष में पितृसत्तात्मक को समर्पित, माता शक्ति, कार्तिक में माता लक्ष्मी,, यमी, चित्रगुप्त आदि देवों को समर्पित है।

मानवीय मूल्यों का संरक्षण एवं संबर्द्धन है रक्षाबंधन


चातुर्मास और भगवान विष्णु की योगनिद्रा... भगवान विष्णु के हाथो में सुदर्शन चक्र, शंख, गदा और कमल का फूल लिए हुए हैं। बूढानी नीलकंठ मंदिर भगवान विष्णु के साथ-साथ भगवान शिव को समर्पित है। "बुढ़ानीलकंठ" अर्थात् जिसका अप्रत्यक्ष रुप से विराजमान है। #सत्येन्द्र कुमार पाठक

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