साहित्य लहर
गीत : हो जाए
धुंधली शाम हो जाए, मैं दुनिया और लोगों से अतः आजिज हो आया हूँ, मुझे एकांत बख्शे सब, थोड़ा आराम हो जाए किस्मत से गुजारिश आख़िरकार कर ही दी मैंने इक इच्छा ये भी थी के मेरा भी नाम हो जाए #सिद्धार्थ गोरखपुरी
हरारत हो गमों को भी
ये अक्सर खुशियाँ कहतीं हैं
सजल आँखों की चाहत है
उन्हें आराम हो जाए
कहने-कहाने को पैदा हुई दुनिया
गर हम जो कुछ कह दें…
तो हम बदनाम हो जाएँ
अश्कों के हवाले से…
बहुत जरूरी खबर है सुन
सभी आ साथ बैठें फिर
छलकता जाम हो जाए
अपनी बात रखने को
तूँ दिन पर दिन जो देता है
असल बात कह दूँ तो
धुंधली शाम हो जाए
मैं दुनिया और लोगों से
अतः आजिज हो आया हूँ
मुझे एकांत बख्शे सब
थोड़ा आराम हो जाए
किस्मत से गुजारिश
आख़िरकार कर ही दी मैंने
इक इच्छा ये भी थी के
मेरा भी नाम हो जाए