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साहित्य लहर

कहानी : किलकारी

कहानी : किलकारी… अकेले में अब वह बात करे तो किससे करे। उसका जीवन साथी तो उसे छोड कर परलोक सिधार चुकी थी। अब देवेन्द्र को खाली घर काटने को दौडता सा महसूस होने लगा। इधर घर का आंगन सूना सूना।‌ लेकिन येन केन प्रकारेण धन जुटा कर व कर्जा लेकर देवेन्द्र ने अपने पुत्र व पुत्र वधु का उपचार जारी रखा। #सुनील कुमार माथुर, जोधपुर, राजस्थान

देवेन्द्र और राधा के एक ही पुत्र था। उन्होंने उसे खूब पढाया लिखाया और अपने पैरों पर खडा किया ‌। उसकी अच्छी नौकरी लग जाने के कुछ समय बाद उसका विवाह बडे ही धूम-धाम के साथ किया। विवाह के बाद साल दो साल गुजर गए लेकिन उनके कोई संतान नहीं हुई। इधर देवेन्द्र और राधा पोता पोती का इंतजार कर रहे थे ताकि घर के आंगन में किलकारी गूंजे और वे बच्चे के साथ अपना समय व्यतीत कर सके। लेकिन होनी को कौन टाल सकता हैं।

जब बच्चे की गूंज सुनाई देती नजर नहीं आई तब देवेन्द्र ने अपनी पत्नी राधा से सलाह मशविरा कर पुत्र व पुत्र वधु का उपचार भी कराया लेकिन संतान नही हुई। इधर चिंता के कारण राधा मन में नाना प्रकार की बातें सोचने लगी और बीमार पड गई। उसका उपचार कराया लेकिन वह ठीक न हो पायी और एक दिन तडके इस नश्वर संसार को छोड़कर परलोक सिधार गई। राधा के निधन से देवेन्द्र पर दुखों का पहाड़ टूट पडा। वह अब अपने आप को अकेला महसूस करने लगा और व हिम्मत हार बैठा।

अकेले में अब वह बात करे तो किससे करे। उसका जीवन साथी तो उसे छोड कर परलोक सिधार चुकी थी। अब देवेन्द्र को खाली घर काटने को दौडता सा महसूस होने लगा। इधर घर का आंगन सूना सूना।‌ लेकिन येन केन प्रकारेण धन जुटा कर व कर्जा लेकर देवेन्द्र ने अपने पुत्र व पुत्र वधु का उपचार जारी रखा। इधर एक दिन देवेन्द्र का एक दोस्त जो दवा विक्रेता था उसको जब देवेन्द्र की उदासी का पता चला तो उसने उसकी हिम्मत बंधाई। समय कब पंख लगा कर उड जाता है पता ही नहीं चलता है। ठीक दीपावली के दिन घर आंगन में किलकारी गूंजी और देवेन्द्र के आंगन में एक नन्हें बालक ने जन्म लिया।

थालियां बजाई गई और मिठाइयां बांटी गई। चारों ओर खुशी का माहौल था। लेकिन देवेन्द्र की दोनों आंखों से आंसू धारा बह रही थी। उसकी आंखों में खुशी के भी आंसू थे और दुःख के भी आंसू थे। उसे दुःख इस बात का था कि राधा पोते का मुख देखे बिना इस नश्वर संसार से विदा हो चुकी थी देवेन्द्र के चेहरे पर अपार खुशियां है कि आज उसके घर आंगन में किलकारी गूंजी है और अब वह अपने पोते के संग समय व्यतीत करेगा। चूंकि कहते हैं कि वृद्धजनों की हरकतें भी बच्चों जैसी ही होती है। जब दो बच्चे ( दादा व पोता ) एक साथ शैतानी करेंगे तब घर आंगन में कैसा शोरगुल होगा और कैसा होगा हंगामा। कौन किसको डांटेगा और फटकारेगा।

बाल साहित्य को गरिमामय स्थान मिले


कहानी : किलकारी... अकेले में अब वह बात करे तो किससे करे। उसका जीवन साथी तो उसे छोड कर परलोक सिधार चुकी थी। अब देवेन्द्र को खाली घर काटने को दौडता सा महसूस होने लगा। इधर घर का आंगन सूना सूना।‌ लेकिन येन केन प्रकारेण धन जुटा कर व कर्जा लेकर देवेन्द्र ने अपने पुत्र व पुत्र वधु का उपचार जारी रखा। #सुनील कुमार माथुर, जोधपुर, राजस्थान

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