साहित्य लहर

कविता : हमारी व्यवस्थाएं

शायद बढ़ती जनसंख्या का भी है असर, देश की व्यवस्था हो चली बहुत ही लचर, जहां हम वंदे भारत को सलाम कर रहे हैं, वही जनरल बोगी पूरी कर रही है कसर, बोलो कहां आसान है जिंदगी का सफर #बंजारा महेश राठौर सोनू, मुजफ्फरनगर (उत्तर प्रदेश)

बोलो कहां आसान है जिंदगी का सफर
मुश्किलों से भरा हुआ है यहां हर सफर
जिधर भी नजर घुमाओ भीड़ ही भीड़ है
भेड़ बकरियों सा हो चला इंसानी सफर
बोलो कहां आसान है जिंदगी का सफर

शायद बढ़ती जनसंख्या का भी है असर
देश की व्यवस्था हो चली बहुत ही लचर
जहां हम वंदे भारत को सलाम कर रहे हैं
वही जनरल बोगी पूरी कर रही है कसर
बोलो कहां आसान है जिंदगी का सफर

भीड़ जहां जगह मिले वहीं जाती हैं पसर
बच्चों के साथ मुश्किल हो जाता है सफर
जिसे भी देखो वही हाथापाई पर उतारू है
अब यात्रा में कहां मिलते हैं हमदर्द हमसफर
बोलो कहां आसान है जिंदगी का सफर,,


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