साहित्य लहर
कविता : विषधर
कविता : विषधर… सामने आता विषधर को देख बड़ी चालाकी से हाथ जोड़कर उसे देवता मान लेते हो वह विषैला अवश्य है, परन्तु उसका हृदय विशाल है वह बिना दुखायें किसी को भी दुख देना नहीं चाहता वह अपना रास्ता बदल लेता तुम मानव हो,मानवता विषधर में है #डा उषाकिरण श्रीवास्तव, मुजफ्फरपुर, बिहार
भ्रष्टाचार, अत्याचार, आतंकवाद
सब तुमने सीख लिया
लेकिन, तुमने कभी भी
सीखने की कोशिश नहीं की
मानवतावाद
जब तुम्हारे आस-पास
कोई विषधर कभी दिखाई पड़ता
तो, तुम अपनी पूरी जमात के साथ
टूट पड़ते हो और अंत में
उसका सर कुचलकर हीं दम लेते हो
और,जब कभी अकेले होते हो
सामने आता विषधर को देख
बड़ी चालाकी से
हाथ जोड़कर उसे देवता मान लेते हो
वह विषैला अवश्य है, परन्तु
उसका हृदय विशाल है
वह बिना दुखायें किसी को भी
दुख देना नहीं चाहता
वह अपना रास्ता बदल लेता
तुम मानव हो,मानवता विषधर में है