कविता : लू की थपेड़े

अपनी किस्मत को रो रहे है छाया के अभाव में आज हर कोई इन लू की थपेडों में डोल रहा हैं हे प्रभु ! आप हम से किस जन्म का बदला ले रहे हैं आप दयानिधान, कृपा निधान हैं हे मेरे प्रभु ! जरा तो रहम करो लू की बलती थपेडों से राहत दिला दीजिए #सुनील कुमार माथुर, जोधपुर, राजस्थान
हे प्रभु ! हम से किस जन्म का बदला ले रहा हैं
सवेरे-सवेरे लू के थपेड़ो से हर कोई परेशान हैं
हर किसी का हाल बेहाल हो रहा हैं
पंखे, कूलर, एसी ये सब
लू के थपेडों के आगे लाचार, बेहाल हैं
भीषण गर्मी व लू के थपेडों के चलते
मकान की छतें, कुर्सियां और दीवारें
भट्टी की तरह तप रहे हैं
मौसमी बीमारियां बढ रही हैं
अस्पतालों में रोगियों की संख्या बढ रही हैं
छाया के अभाव में यह गर्मी
हर किसी को मौत के मुंह की ओर
धकेल रही हैं
विकास के नाम पर और
रातों रात करोड़पति बनने के नाम पर
हरे भरे वृक्षों का हमने सफाया कर डाला
भले ही वह हमारा स्वार्थ था लेकिन
आज हम उसे अपनी नादानी
बहुत बडी भूल बतला कर इतिश्री कर रहे हैं
धरती के अनमोल आभूषणों और
आक्सीजन के अनमोल खजाने को
सरे आम नष्ट कर अब
अपनी किस्मत को रो रहे है
छाया के अभाव में आज हर कोई
इन लू की थपेडों में डोल रहा हैं
हे प्रभु ! आप हम से किस
जन्म का बदला ले रहे हैं
आप दयानिधान, कृपा निधान हैं
हे मेरे प्रभु ! जरा तो रहम करो
लू की बलती थपेडों से राहत दिला दीजिए