कविता : मेरे मम्मी-पापा
कविता : मेरे मम्मी-पापा… खुद खाने से पहले, मुझको खूब खिलाते थे रूठूं जो मैं कभी, पल भर में मुझे मनाते थे मम्मी-पापा मुझे,राजा बेटा कहकर बुलाते थे। गिरता था जब कभी, दौड़कर मुझे उठाते थे चूम कर माथा मेरा, सीने से मुझे लगाते थे मम्मी-पापा मुझे,राजा बेटा कहकर बुलाते थे। #सुनील कुमार, एआरपी (विज्ञान), बहराइच,उत्तर प्रदेश
छोटा था जब मैं कभी, गोदी में मुझे उठाते थे
उंगली पकड़कर मेरी, चलना मुझे सिखाते थे
मम्मी-पापा मुझे,राजा बेटा कहकर बुलाते थे।
रोता था जब मैं कभी, मुझको खूब हंसाते थे
सैर – सपाटा मुझे कराने, कंधे पर बैठाते थे
मम्मी-पापा मुझे,राजा बेटा कहकर बुलाते थे।
खुद खाने से पहले, मुझको खूब खिलाते थे
रूठूं जो मैं कभी, पल भर में मुझे मनाते थे
मम्मी-पापा मुझे,राजा बेटा कहकर बुलाते थे।
गिरता था जब कभी, दौड़कर मुझे उठाते थे
चूम कर माथा मेरा, सीने से मुझे लगाते थे
मम्मी-पापा मुझे,राजा बेटा कहकर बुलाते थे।
गलतियों पर मेरी, अक्सर मुझे समझाते थे
भले-बुरे में भेद बताकर, सही राह दिखाते थे
मम्मी-पापा मुझे, राजा बेटा कहकर बुलाते थे।
गुस्सा होता जब मैं कभी,खूब प्यार जताते थे
खुशियों पर मेरी,अपना सब कुछ लुटाते थे
मम्मी-पापा मुझे,राजा बेटा कहकर बुलाते थे।
हर गम अपना छिपाकर, अक्सर मुस्कुराते थे
मांगू मैं जो भी कभी, हंसी – खुशी दिलाते थे
मम्मी-पापा मुझे, राजा बेटा कहकर बुलाते थे।