कविता : मेरे प्रभु जी श्रीराम

मात-पिता, गुरु सेवा से, पाए जग में यश महान हरि विष्णु के थे अवतारी, मेरे प्रभु जी श्रीराम। प्रेम-बंधुत्व की कायम की, जग में अमिट मिसाल शिवधनुष तोड़ स्वयंवर में,रचाए सिया संग ब्याह हरि विष्णु के थे अवतारी, मेरे प्रभु जी श्रीराम। #सुनील कुमार, बहराइच,उत्तर प्रदेश
चैत्र मास नवमी तिथि, पावन अयोध्या धाम
राजा दशरथ के भवन, जन्मे प्रभु श्रीराम।
जन्म से जिनके धन्य हुआ, तीर्थ अयोध्या धाम
हरि विष्णु के थे अवतारी, मेरे प्रभु जी श्रीराम।
मात-पिता, गुरु सेवा से, पाए जग में यश महान
हरि विष्णु के थे अवतारी, मेरे प्रभु जी श्रीराम।
प्रेम-बंधुत्व की कायम की, जग में अमिट मिसाल
शिवधनुष तोड़ स्वयंवर में,रचाए सिया संग ब्याह
हरि विष्णु के थे अवतारी, मेरे प्रभु जी श्रीराम।
पिता वचन निभाने को,काटा चौदह बरस वनवास
कीर्ति पताका जिसकी फहरी, देखो सकल ब्रह्मांड
हरि विष्णु के थे अवतारी, मेरे प्रभु जी श्रीराम।
सुर-नर-मुनि जन सब, करते जिनका गुणगान
सुमिरन से जिनके कटे, जन – जन के संताप
हरि विष्णु के थे अवतारी, मेरे प्रभु जी श्रीराम।