कविता : मां की ममता
उसे भी अब छोटा हो गया स्वेटर अब मां ने उसे खोलकर रंगीन धागों के साथ फीर से नया बना दिया जिन बच्चों के पास नहीं थे स्वेटर उनके लिए बिना परवाह किए मां ने अपनी साड़ी को दो टूक कर गांती बांध दिया करती थी मां ममता के आगे नहीं टिक पाती थी ठंढ! #डा उषाकिरण श्रीवास्तव
कड़कड़ाती ठंड से अपने
लाढले को बचाने के लिए
मां के पास
सिर्फ ममता थी ।
नहीं थे पहनाने के लिए
ब्रांडेड स्वेटर, नहीं थे जैकेट
थर-थर कांपते
कलेजे के टुकड़ों के लिए
सिर्फ ममता थी।
मुझे अच्छी तरह याद है
बड़े भैया के लिए
नये स्वेटर को बुनना
अपने हाथों से बुनी थीं मां ने
फिर क्या था?
भैया का छोटा स्वेटर
मुझे पहनाया गया
फिर उसे मेरे छोटे भाई ने पहना
उसे भी अब छोटा हो गया स्वेटर
अब मां ने उसे खोलकर
रंगीन धागों के साथ
फीर से नया बना दिया
जिन बच्चों के पास नहीं थे स्वेटर
उनके लिए बिना परवाह किए
मां ने अपनी साड़ी को दो टूक कर
गांती बांध दिया करती थी मां
ममता के आगे नहीं टिक
पाती थी ठंढ!