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साहित्य लहर

कविता : बेटी

बेटी, द्वारे पर शहनाई बजेगी होगा आंगन में कन्या-दान, सहमी-सकुची सी मेरी गुड़िया जायेंगी अपने ससुराल। कैसे भटक गई तुम बेटी कौन से राह को साध लिया, घात लगा बैठा था दरिंदा सपनो को चकनाचूर किया। तेरी भोली-भाली सूरत… #डा उषाकिरण श्रीवास्तव, वसुंधरा, मुजफ्फरपुर, बिहार

बेटी तुम हो कली ग़ुलाब की
उलझ न जाना कांटों से,
मां-पिता के हृदय की धड़कन
भटक न जाना राहों से।

आंगन में चहुंओर तुम्हारी
हंसी गुंजती रहती है,
भाई-बहन संग उच्छल-कूद की
शोर सुनाई पड़ती है।

तुमको खुलकर जीने को
मैंने सारा आकाश दिया,
लाड़-प्यार से पाल पोसकर
मैंने तुमको बड़ा किया।

द्वारे पर शहनाई बजेगी
होगा आंगन में कन्या-दान,
सहमी-सकुची सी मेरी गुड़िया
जायेंगी अपने ससुराल।

कैसे भटक गई तुम बेटी
कौन से राह को साध लिया,
घात लगा बैठा था दरिंदा
सपनो को चकनाचूर किया।

तेरी भोली-भाली सूरत
भूल नहीं हम पाते हैं,
सोंच के हृदय विदारक यातना
तड़प-तड़प रह जातें हैं।

कविता : बढ़ती आबादी


बेटी, द्वारे पर शहनाई बजेगी होगा आंगन में कन्या-दान, सहमी-सकुची सी मेरी गुड़िया जायेंगी अपने ससुराल। कैसे भटक गई तुम बेटी कौन से राह को साध लिया, घात लगा बैठा था दरिंदा सपनो को चकनाचूर किया। तेरी भोली-भाली सूरत... #डा उषाकिरण श्रीवास्तव

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