साहित्य लहर
कविता : बरसात

बरसात… वसंत के वन बाग में मानो कोयल कूकती हो मेरे मन की सच्ची प्यार। बरसात में कितने अच्छे लगते ऊंचे हरे भरे पहाड़। तलहटी में धरती करती तीज त्योहार के दिन अपना मधुमय श्रृंगार। #राजीव कुमार झा
Video Player
00:00
00:00
मेरी पहली प्यार हो
गंगा की पावन
धार हो।
बरसात में सुनहली
धूप की बहार हो।
सागर में नदिया की
अविरल बसी संसार हो,
वनफूलों की प्रेमहार हो।
तुम बारिश के संग,
हवा में झूमती सुवास हो।
वसंत के वन बाग में
मानो कोयल कूकती हो
मेरे मन की सच्ची प्यार।
बरसात में कितने
अच्छे लगते
ऊंचे हरे भरे पहाड़।
तलहटी में धरती करती
तीज त्योहार के दिन
अपना मधुमय श्रृंगार।