कविता : बरखा रानी

बरखा रानी… नदी के घाट पर आकर मन का ठहरना झंझावातों से भरी बीत जाती तुमसे मुलाकातों की कहानी दुपहरी में तुम प्यार में खोई बारिश के मौसम में पनिहारिन सी ख़ामोश बैठी शाम ताजी हवा के झोंकों में लगती सयानी पहाड़ों से उतरकर जिंदगी की तलहटी में तुम गीत गाती… #राजीव कुमार झा
तुम्हारा प्यार
सिर्फ़ सच्चा लगता
संदेश पाकर
अपने मन की बातें
कभी कविताओं में
तुमको कहा करता
तुम भूल जाती
क्या प्यार अपना
दोस्ती में ऐसा
कभी नहीं करना
जिंदगी में दो पल
तुम्हारा साथ रहना
सपनों में चांद का
हंसना
बरसात में बहती
नदी के घाट पर आकर
मन का ठहरना
झंझावातों से भरी
बीत जाती
तुमसे मुलाकातों की
कहानी
दुपहरी में तुम
प्यार में खोई
बारिश के मौसम में
पनिहारिन सी
ख़ामोश बैठी शाम
ताजी हवा के
झोंकों में लगती
सयानी
पहाड़ों से उतरकर
जिंदगी की तलहटी में
तुम गीत गाती
नयी नवेली
दुल्हन सी बनी
बरखा रानी