कविता : घरौंदा
कविता : घरौंदा… कभी तुम्हारे संग किसी दिन हम सागर के भीतर जाकर दीवाली का एक घरौंदा उसके तल पर कभी बनाते जग की आंखों से दूर तुम्हारी माया मुझको बेहद भाती मिट्टी की बनी तुम्हारी काया प्रेम का मीठा पानी बादल बरसाने नीलगगन में आया सितारों को किसने आंगन में आज बुलाया… #राजीव कुमार झा
चांदनी रातों में
कितने सुंदर लगते
तुम्हारे काले घने रेशमी बाल
सपनों में जग जाती कोई रात
आज बताऊं अपने मन की
तुमको सबसे सुंदर बात
यादों के तट पर सागर की हलचल
इस धरती पर आज उमगता
बारिश में कोई हरा-भरा जंगल
तुम रूप की रानी हो
सुबह के सपनों में खोई
तुम सूरज की राजकुमारी हो
तुम हंसती हो
कोमल गालों पर
प्यार के गड्ढे बन जाते
कभी तुम्हारे संग
किसी दिन हम सागर के
भीतर जाकर
दीवाली का एक घरौंदा
उसके तल पर कभी बनाते
जग की आंखों से दूर
तुम्हारी माया
मुझको बेहद भाती
मिट्टी की बनी तुम्हारी काया
प्रेम का मीठा पानी बादल
बरसाने
नीलगगन में आया
सितारों को किसने आंगन में
आज बुलाया