साहित्य लहर
कविता : गांव की भोर
कविता : गांव की भोर… मंदिर में घंटी बाजे गोपाल की मूरत सजे छत पर नाचे मोर बड़ी सुहानी गांव की भोर चाची आंगन बुहारे आसमान से गुम हुए सितारे गुड़िया देती तुलसी को जल धार बड़ी सुहानी गांव की भोर दादी गाती सुर से मंत्र दादा पढ़ते अखबार में लोकतंत्र… #मुकेश कुमार ऋषि वर्मा, आगरा, उत्तर प्रदेश
बड़ी सुहानी गांव की भोर
मुर्गा बोले
जन आंखें खोलें
बापू चले खेत की ओर
बड़ी सुहानी गांव की भोर
मंदिर में घंटी बाजे
गोपाल की मूरत सजे
छत पर नाचे मोर
बड़ी सुहानी गांव की भोर
चाची आंगन बुहारे
आसमान से गुम हुए सितारे
गुड़िया देती तुलसी को जल धार
बड़ी सुहानी गांव की भोर
दादी गाती सुर से मंत्र
दादा पढ़ते अखबार में लोकतंत्र
तोता-मैना की जोड़ी सुंदर
बड़ी सुहानी गांव की भोर