कविता : आया मानसून
आया मानसून… बाढ़ भूस्खलन डूबते खेत खलिहान, प्रकृति के इस चक्र में इंसान लाचार। प्रकृति को छेड़ो नहीं सजाओ सदा, कभी गर्मी तो मानसून आयेगा हर बार। सुख दुःख का साहस से करें सामना, बदलते मौसम की तरह हर पल बीत जाता। जीवन में बहती समय की धारा का, एहसास मानसून है कराता। #भुवन बिष्ट, रानीखेत (उत्तराखंड)
जीवन में बहती समय की धारा का,
एहसास मानसून है कराता।
कभी बढ़ती गर्मी से तपती धरा तो,
कभी बरसते मेघ ठिठुरता।
बदलते रहते क्षण जिंदगी में यहाँ,
जैसे मानसून का आगमन।
सूख रही थी नदियाँ जलधाराऐं तब,
अब बाढ़ भीगती धरा हर जन।
हर मौसम का अपना है महत्व,
गर्मी से त्रस्त मानसून का इंतजार।
प्यासी थी यह धरा बिन जल,
धरा में अब हरियाली की बहार।
बाढ़ भूस्खलन डूबते खेत खलिहान,
प्रकृति के इस चक्र में इंसान लाचार।
प्रकृति को छेड़ो नहीं सजाओ सदा,
कभी गर्मी तो मानसून आयेगा हर बार।
सुख दुःख का साहस से करें सामना,
बदलते मौसम की तरह हर पल बीत जाता।
जीवन में बहती समय की धारा का,
एहसास मानसून है कराता।