साहित्य लहर
कविता : अलविदा
अलविदा… नजराना देते अपने दोस्त को अकेला देखकर दोपल के लिए बांहों में कहीं भरते चुप्पी में उसकी आहें उसे इतने दिनों के बाद हम फिर क्या बताएं हुस्न का जाम पीते रहे अंधेरे को सुबह अलविदा कहते… #राजीव कुमार झा
जिंदगी की जवान
हसरतों की फेहरिस्त
लेकर
तुम्हें प्यार का
नजराना देते
अपने दोस्त को
अकेला देखकर
दोपल के लिए
बांहों में कहीं भरते
चुप्पी में उसकी आहें
उसे इतने दिनों के
बाद
हम फिर क्या बताएं
हुस्न का जाम
पीते रहे
अंधेरे को सुबह
अलविदा कहते