***
साहित्य लहर

कविता : अपने तो अपने होते हैं…

मां के स्नेह से डरकर यमराज भाग जाये, पिता के आशीर्वाद से कंगाली छूमंतर हो जाये, जगत में कुछ भी कर लेना पर अपनों का साथ न छूटे, अपने तो अपने होते हैं, ये नाजुक रिश्ते कभी न टूटे… #मुकेश कुमार ऋषि वर्मा, फतेहाबाद, आगरा (उत्तर प्रदेश)

मर-मर कर देख लिया
जी-जी कर भी देख लिया
अपनों का स्नेह देख लिया
अपनों का अपनत्व भी देख लिया

चंचल मन मेरा पगलाया
मन की पीड़ा ने बहुत रुलाया
दर-दर भटका चैन कहीं न पाया
फिर अपनों ने ही गले लगाया

जीना हो या मरना, धन ही काम आता
धन का जादू सबको भरमाता
साधु-संत हों या गृहस्थ हों धन सबके काम आया
धन बिन अच्छा-बुरा कोई कार्य पूर्ण न हो पाया

मां के स्नेह से डरकर यमराज भाग जाये
पिता के आशीर्वाद से कंगाली छूमंतर हो जाये
जगत में कुछ भी कर लेना पर अपनों का साथ न छूटे
अपने तो अपने होते हैं, ये नाजुक रिश्ते कभी न टूटे


Devbhoomi Samachar

देवभूमि समाचार में इंटरनेट के माध्यम से पत्रकार और लेखकों की लेखनी को समाचार के रूप में जनता के सामने प्रकाशित एवं प्रसारित किया जा रहा है।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
Verified by MonsterInsights