अन्न का अनादर क्यों?
जरूरत पडने पर दौबारा भोजन ले लीजिए, लेकिन एक ही बार में ढेर सारा अनावश्यक भोजन लेकर जूंठा न छोडे। अगर हम अन्न का यूं ही अनादर करते रहे तो हो सकता है कि अन्न के भंडार समय से पहले ही खाली हो जाये और फिर हमें दाने दाने को तरसना पडे। #सुनील कुमार माथुर, जोधपुर, राजस्थान
मैं अपने आप से पूछता हूं कि क्या हम सभ्य समाज के सभ्य नागरिक हैं तो सीधा सा जवाब मिलता है हां तब फिर भला देश भर में यह अन्न का अनादर क्यों हो रहा है। ब्याह शादी, बच्चों के जन्म दिन पर, शादी की सालगिरह पर एवं खुशी के हर मौके पर आयोजित भोज में 56 प्रकार के व्यंजन बनाए जा रहे हैन और खाने वाला भरी की भरी प्लेटे जूंठी डाल रहे है। क्यों इतने आइटम बनाये जा रहे हैं और क्यों अन्न का अनादर किया जा रहा है।
क्या हम इतना सब खा सकते हैं। जवाब हैं नहीं… नही… नहीं…। तो फिर इतनी वैराइटी क्यों बनाते हैं और फिर जूंठा फैंक कर हम उस अन्न का अनादर कर रहे हैं। कहां गई हमारी अन्न बचाने की मुहिम ? कहां गई हमारी उच्च शिक्षा, सोच और संस्कार। क्यों घमंड, अंहकार, शान शौकत के बहाने व्यर्थ में धन बर्बाद कर रहे हैं।
अगर हमारे व आपके पास जरूरत से अधिक धन है तो किसी जरूरतमंद की मदद कीजिए। किसी बच्चे की स्कूल कालेज की फीस भरे, उन्हे किताब कापिया दिलाइये, बीमार रोगी का उपचार कराइए। किसी गरीब कन्या के विवाह समारोह में कन्यादान कीजिए। कहने का तात्पर्य यह है कि परोपकार के कार्यों में धन का उपयोग कीजिए।
लेकिन व्यर्थ मे जूंठा भोजन छोड कर अन्न का अनादर मत कीजिए। इससे तो अच्छा है कि हम भूखे को ताजा ताजा भोजन कराएं। अन्न का अनादर मां अन्नपूर्णा का अनादर है। अतः अपनी थाली में उतना ही भोजन लें जितना आप आसानी से खा सकते है।
जरूरत पडने पर दौबारा भोजन ले लीजिए, लेकिन एक ही बार में ढेर सारा अनावश्यक भोजन लेकर जूंठा न छोडे। अगर हम अन्न का यूं ही अनादर करते रहे तो हो सकता है कि अन्न के भंडार समय से पहले ही खाली हो जाये और फिर हमें दाने दाने को तरसना पडे।