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अनिल बलूनी बोले- स्वयं के लक्ष्य से हमारा मुकाबला

राज्य के करीब 80 हजार से अधिक दिव्यांग मतदाताओं में बमुश्किल तीन हजार लोग ही मतदान को तैयार हुए। वहीं, 85 की उम्र पार कर चुके करीब 65 हजार मतदाताओं में 9,400 लोग ही घर बैठकर मतदान करने को तैयार हुए।

देहरादून। देश की सबसे बड़ी पंचायत के लिए उत्तराखंड के मतदाता अपने ‘पांच पंचों’ को चुनकर भेजेंगे। राज्य के करीब 83 लाख मतदाता हर लिहाज से अहम हैं, क्योंकि 18वीं लोकसभा के गठन के लिए पहले चरण में शामिल मतदाताओं का मूड अगले छह चरणों में चुनावी माहौल बनाएगा। राज्य के मतदाता विधानसभा चुनाव के बाद करीब 25 महीने बाद बड़ा फैसला लेने जा रहे हैं।

पांचों लोकसभा सीट जिसमें गढ़वाल मंडल की हरिद्वार, गढ़वाल और टिहरी के साथ कुमाऊं मंडल की नैनीताल-ऊधमसिंह नगर और सुरक्षित सीट अल्मोड़ा-पिथौरागढ़ के मतदाताओं पर इस बार अपना सांसद चुनने के साथ मतदान प्रतिशत बढ़ाने की भी बड़ी जिम्मेदारी है।

उत्तराखंड से इस बार 75 फीसदी मतदान की आस है। 55 उम्मीदवारों की करीब 22 दिनों की कड़ी मेहनत, भागदौड़ और खुद को बेहतर साबित करने की होड़ के बाद उन्हें परखने का दिन है। ये सच है कि उत्तराखंड लंबे समय से दो दलों भाजपा-कांग्रेस से ही अपने सांसद चुनता रहा है, लेकिन कुछ अन्य दलों के उम्मीदवार और निर्दलीय खिलाड़ियों का प्रदर्शन चुनावी खेल को प्रभावित कर सकता है।

पिछले तीन लोकसभा चुनाव से राज्य के मतदाताओं ने ‘पांच पंचों’ की टोपी एक रंग में रंगी है। 2009 में कांग्रेस और उसके बाद 2014- 2019 में पांचों सांसद भाजपा के चुनकर भेजे हैं। भाजपा का समर्थक मतदाता हर बार की तरह इस बार भी मुखर होकर सामने है और चौक-चौराहे से लेकर घर के चौके-चूल्हे तक पार्टी को चर्चा में बनाए रखे है, जबकि कांग्रेस का समर्थक मतदाता बहस और बयानबाजी से दूर खामोशी से अपने फैसले का इंतजार कर रहा है।

भाजपा ने मतदाताओं के घर तक पहुंचने और उन्हें बूथ तक लाने के प्रबंधन की कुशल रणनीति पन्ना प्रमुख के साथ बनाई है, जबकि कांग्रेस अंतिम दिन तक संसाधन और समर्थक जुटाने, राजनीतिक समीकरण बनाने में लगी दिखी। इस दौरान पार्टी छोड़कर भाजपा में गए नेताओं और कार्यकर्ताओं ने भी हतोत्साहित किया। कुछ ऐसे स्थान भी रहे जहां कांग्रेस इस चुनाव में दफ्तर भी नहीं खोल पाई। बावजूद कांग्रेस उम्मीदवार चुनाव लड़ते-भिड़ते दिखे।

भाजपा के पक्ष में देशभर में बनी धारणा के बावजूद शीर्ष नेतृत्व ने अपने उम्मीदवारों को मजबूती और संरक्षण देने के लिए जमकर प्रचार किया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह, रक्षामंत्री राजनाथ, राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के साथ अन्य नेता पहुंचे। प्रधानमंत्री के दो दौरों ने दोनों मंडलों में उम्मीदवारों को चुनावी ऊर्जा प्रदान की। दो लोकसभा चुनाव 2014 और फिर 2019 में लगातार पांचों सीटें जीतने वाली भाजपा ने मतदाताओं के बीच पहुंचने और अपनी बात रखने में कोई कसर नहीं छोड़ी।



इसके ठीक उलट राज्य में प्रमुख विपक्षी दल की भूमिका निभा रही कांग्रेस के उम्मीदवार स्टार प्रचारकों की उम्मीद लगाए रहे। 40 स्टार प्रचारकों में कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी की दो सभाएं हुईं। पौड़ी लोकसभा की रामनगर विधानसभा में पहुंचकर प्रियंका ने कुमाऊं की दोनों सीटों तक अपनी बात पहुंचाने और फिर हरिद्वार सीट के लिए रुड़की में प्रचार किया। आखिरी दिन दूसरे प्रचारक के तौर राजस्थान के नेता सचिन पायलट पहुंचे।



हरिद्वार सीट के लिए बसपा प्रमुख मायावती भी अपने उम्मीदवार के समर्थन में पहुंचीं। चुनावी मुकाबले के दौरान भाजपा-कांग्रेस के उम्मीदवारों की भरसक कोशिश दिखी कि प्रतिद्वंद्वी को अपने मैदान और अपनी पिच पर खेलने को मजबूर किया जाए। भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व के निर्देश और रणनीति में प्रधानमंत्री मोदी का चेहरा और केंद्रीय मुद्दों पर ही केंद्रित चुनाव था, जबकि कांग्रेस के सभी उम्मीदवार चुनाव को राज्य के सरोकारों और स्थानीय मुद्दों पर खींचकर लाने की कोशिश करते दिखे।



कांग्रेस के उम्मीदवारों की ओर से उठाए गए तमाम स्थानीय मुद्दों पर भाजपा के केंद्रीय नेताओं ने उम्मीदवारों की गारंटी लेकर इसे देश का चुनाव साबित करने का काम किया। कांग्रेस के पास फिलहाल न तो राज्य में बताने के लिए कुछ था और न ही केंद्र की पुरानी सरकारों का, लिहाजा भाजपा के केंद्रीय नेता जो कुछ कहकर गए स्टार प्रचारक और उम्मीदवार बस उसकी काट और उसे गलतबयानी बताने में जुटे रहे। कुछ लोकसभा सीट पर कांग्रेस के स्थानीय मुद्दों ने भाजपा की मुश्किलें भी बढ़ाईं।



स्टार प्रचारकों की गारंटी के बाद भी कुछ स्थानीय मुद्दों का प्रभाव दिखेगा। इस चुनाव में राज्य के सर्विस वोटर की रिकार्ड भागीदारी दिखी। राज्य के करीब 93 हजार सर्विस वोट में करीब 90 हजार ने अपने मत का प्रयोग किया, जबकि घरों से वोट लाने की प्रक्रिया सिरे से परवान नहीं चढ़ी। चुनाव आयोग ने इस बार दिव्यांग और 85 साल से ऊपर के मतदाताओं के घर पहुंचकर उनके वोट पड़वाने की तैयारी की थी, लेकिन इसके नतीजे बहुत निराश करने वाले रहे।



राज्य के करीब 80 हजार से अधिक दिव्यांग मतदाताओं में बमुश्किल तीन हजार लोग ही मतदान को तैयार हुए। वहीं, 85 की उम्र पार कर चुके करीब 65 हजार मतदाताओं में 9,400 लोग ही घर बैठकर मतदान करने को तैयार हुए। ऐसे में राज्य के अन्य मतदाताओं की जिम्मेदारी और बढ़ जाती है, ताकि मतदान प्रतिशत बढ़ाने का लक्ष्य हासिल किया जा सके। साथ ही दिव्यांग और बुजुर्ग श्रेणी के शेष मतदाताओं को भी बूथ तक लाकर उनका वोट प्रतिशत भी बढ़ाने की जरूरत है।


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