मानव जीवन की संस्कृति समाहित है संस्कृत
मानव जीवन की संस्कृति समाहित है संस्कृत… वैदिक साहित्य में श्रावणी कहा जाता था। गुरुकुलों में वेदाध्ययन, यज्ञोपवीत धारण, संस्कार को उपनयन अथवा उपाकर्म संस्कार, ब्राह्मण यजमानों एवं भाई की कलाई पर रक्षासूत्र बांधते हैं। ऋषि द्वारा संस्कृत साहित्य के आदि स्रोत होने के कारण श्रावणी पूर्णिमा को ऋषि…
मुजफ्फरपुर। विश्व संस्कृत दिवस के अवसर पर सच्चिदानंद शिक्षा एवं समाज कल्याण संस्थान एवं स्वंर्णिम कला केंद्र के संयुक्त तत्वावधान में श्रावणी पूर्णिमा, रक्षा बन्धन, ऋषियों के स्मरण दिवस एवं विश्व संस्कृत दिवस समारोह आयोजित हुई। विश्व संस्कृत दिवस पर साहित्यकार व इतिहासकार सत्येन्द्र कुमार पाठक ने कहा कि मानव जीवन की संस्कृति संस्कृत में समाहित है।
वैदिक साहित्य में श्रावणी कहा जाता था। गुरुकुलों में वेदाध्ययन, यज्ञोपवीत धारण, संस्कार को उपनयन अथवा उपाकर्म संस्कार, ब्राह्मण यजमानों एवं भाई की कलाई पर रक्षासूत्र बांधते हैं। ऋषि द्वारा संस्कृत साहित्य के आदि स्रोत होने के कारण श्रावणी पूर्णिमा को ऋषि पर्व और संस्कृत दिवस के रूप में मनाया जाता है।
भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय के आदेश से श्रावण पूर्णिमा 1969 ई. को प्रतिवर्ष केन्द्रीय तथा राज्य स्तर पर संस्कृत दिवस मनाने का निर्देश जारी किया गया था। भारत में संस्कृत दिवस श्रावण पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है।प्राचीन भारत में शिक्षण सत्र प्रारम्भ, वेद पाठ का आरंभ, छात्र शास्त्रों के अध्ययन का प्रारंभ किया करते थे।
जर्मनी आदि विदेशों में संस्कृत उत्सव बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है। इसमें केन्द्र तथा राज्य सरकारों का भी योगदान उल्लेखनीय है। उत्तराखण्ड में संस्कृत आधिकारिक द्वितीय राजभाषा घोषित है। विश्व संस्कृतदिवस पर स्वंर्णिम कला केंद्र की अध्यक्षा लेखिका उषाकिरण श्रीवास्तव ने संस्कृतकी प्रधानता पर विचार व्यक्त किया।
मानवीय जीवन का संरक्षण करता है रक्षाबंधन